आत्मकथा

वजह

आज सुबह-सुबह वेलेंटाईन डे के दिन वैलेंटाइन क्लिक प्रतियोगिता का नतीजा आया था, सर्वश्रेष्ठ वैलेंटाइन क्लिक के लिए सुहास को प्रथम पुरस्कार से नवाजा गया था. सुहास की आंखों के सामने अतीत की लड़ियां एक एक कर खुल रही थीं.

”एक प्यारा-सा दिल जो कभी नफरत नहीं करता,
एक प्यारी-सी मुस्कान जो कभी फीकी नहीं पड़ती,
एक अहसास जो कभी दुःख नहीं देता,
और एक रिश्ता जो कभी खत्म नहीं होता.”

पहले वैलेंटाइन डे पर रोहन द्वारा कही गई इन प्यारी-सी पंक्तियों को सुहास कभी भी नहीं भुला पाई. यहां तक कि रोहन के दूर चले जाने पर भी न तो उसने नफरत को पास फटकने दिया, न अपनी मुस्कान को फीका पड़ने दिया. रोहन ने अपने और उसके सारे प्रेमपत्रों को बड़ी खूबसूरती से रेशमी-सुनहरी डोरी से बांधकर एक कागज के लाल गुलाब से महका दिया था. सुहास रोज उस बंडल को उठाती, छूती, प्यार करती, लेकिन कभी उस खूबसूरत गांठ को न कभी उसने खोला, न चिट्ठियां पढ़ीं. पढ़ने की जरूरत ही कहां थी! उसे सब कुछ याद जो था!

”इन चिट्ठियों पर नकली गुलाब क्यों?” सुहास ने पूछा था.

”नकली गुलाब कभी आब नहीं खोएगा और हमारा प्यार भी.”

प्यार ने आब खोई हो या नहीं, पर अब कई बरसों से दो परिंदे अलग-अलग डालों पर थे. बहरहाल इस समय तो सुहास अपने विचारों में खोई थी.

तभी ट्रिन-ट्रिन की आवाज ने उसकी तंद्रा भंग की. उसने मोबाइल देखा, कोई कॉल नहीं थी, पर ट्रिन-ट्रिन की आवाज चलती रही. ”ओहो कॉल बेल बज रही है!” कहती कुई सुहास दरवाजा खोलने गई.

”प्रथम पुरस्कार मुबारक हो सुहास.” दरवाजे से ही रोहन कह रहा था.

”तुम्हें कैसे पता चला, मेरे पास तो अभी-अभी मैसेज आया है?”

”हम सारी खबर रखते हैं जानेमन, आज्ञा हो तो अंदर आकर बधाई दूं!”

”आओ-आओ, तुम्हारा ही घर है, पूछने की क्या जरूरत है? बताओ न तुम्हें कैसे पता चला!” सुहास को अपने प्रश्न का उत्तर जल्दी चाहिए था.

”प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल का प्रमुख निर्णायक मैं ही था. पर यह न समझना कि मैंने कोई पक्षपात किया है. सबकी यही राय थी.”

”तुम्हारी क्या राय थी?”

”मैं तो इस बात पर हैरान था, कि तुमने सब कुछ वैसा ही रहने दिया, गुलाब की आब भी बनी रहने दी, बिलकुल वैसे ही जैसे पहले दिन थी.”

”प्यार की आब…”

”प्यार की आब ने ही तो गुलाब को इतनी ताजगी दे दी है.” रोहन ने बीच में ही बात काटते हुए कहा. ”न तुम मुझे भूल पाई हो, न मैं तुम्हें भुला पाया. तुम्हारी फोटोग्राफी में भी निखार आ गया है. कितनी खूबसूरती से क्लिक किया है तुमने!” रोहन अपनी रौ में कहता गया बिना देखे कि कोई उसकी बात सुन रहा है या नहीं.

तभी हाथ में लाल गुलाब लिए सुहास ने आकर उसे ”हैप्पी वैलेंटाइन डे” कहा.

आब को बरकरार रहने की वजह मिल गई थी.

14.2.20

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “वजह

  • लीला तिवानी

    मन से अहम निकल जाए, तो प्यार को पुनः पनपने की वजह मिल जाती है. प्रतियोगिता में जीत या वेलेंटाईन डे तो एक वजह है, ज़रिया है. वेलेंटाईन डे के दिन प्रतियोगिता में जीत को बधाई और लाल गुलाब ने अहम की दीवार को ढहा दिया.

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