लघुकथा

स्टेपनी

चमचमाती कार फर्राटे से भाग रही थी । उसके चारों टायर कार के साथ का सुख भोग रहे थे व बड़े खुश थे । डिक्की में पड़ा स्टेपनी का टायर अपने भाग्य पर रो रहा था , ‘ मुझे पता नहीं कब कार के सान्निध्य में आने का मौका मिलेगा ? ‘  उसकी खुशकिस्मती से एक टायर पंचर हो गया । कार में लगकर स्टेपनी का टायर अपने भाग्य पर इतराने लगा ।

कार ने भी झूम कर स्टेपनी का स्वागत किया और अपने सच्चे प्यार का वास्ता दिया । उसे अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए उसके सहारे की जो जरूरत थी ! कार के प्यार में वह ख़ुद को दुनिया का सबसे खुशकिस्मत समझने लगा । लेकिन उसकी यह खुशफहमी बहुत थोड़े ही समय रही । कुछ समय बाद कार का वह प्रिय पंचर टायर बनकर एक बार फिर कार में फिट हो गया । अपने प्रिय टायर को पाकर कार एक बार फिर खुशी से झूम उठी । वह स्टेपनी का टायर अब डिक्की में बंद अँधेरे में अपने नसीब पर रो रहा था ।  अब शायद तब तक रोना ही उसकी नियति बन गई थी जब तक कि फिर से कोई मुख्य टायर पंचर न हो जाए !

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।