सामाजिक

देंहव्यापार

देंहव्यापार

वैश्यालय समाज का ऐसा हिस्सा जिससे समाज अछूता नही पर मान्यता नही मिलती….आखिर क्यों??????
सोचा है कभी अगर नहीं तो एक बार कुछ समय निकालकर अवश्य सोचें!!!!
मुम्बई का रेड लाइट एरिया, कलकत्ता का सोनागाछी, दिल्ली का जीबी रोड… हर शहर की एक ऐसी बदनाम जगह होती है आप भी जानते हैं। ये तो ठीक, बड़े-बड़े होटलों के कमरों में हल्की नीली लाइट के बारे में सबको पता है क्या होता ह?
मसाज सेंटरर्स के बारे मे ंतो आपको पता ही होगा। सफेद पोशों की काली करतूतों के बारें में अक्सर पता चल ही जाता है। शहर और गांवों से लड़कियों को अपहरित करके बेंच दिया जाता है उन सफेद पोशों की विलासिता के लिए। उन लड़कियों का क्या कुसूर…???? वो नहीं लौट पाती अपनी जिन्दगी में।

न चाहते हुए भी उन्हें हर रोज नए-नए बिस्तर पर बिछना पड़ता है। सरकार ने कई कदम उठाए हैं उनके पुर्नवास के लिए लेकिन सब बेकार। फिल्मी दुनिया जैसी दिखती है वैसी तो नही। फिल्म और टीवी की कई कलाकारों के एलबम बने होते हैं उनके रेट्स के साथ जो दूसरे देशों में भी जाती हैं, ये शायद की किसी को पता हो। मैने खुद देखा है….

महिला और बाल विकास मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 30 लाख से ज्यादा महिलाएं देह व्यापार में लिप्त हैं। जिसमें लगभग 36 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं जो 18 साल की उम्र के पहले ही इस व्यापार में शामिल हो गईं। जबिक ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 2 करोड़ सेक्स वर्कर हैं, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस धंधे में शामिल हैं।

भारत में वेश्यावृत्ति या देहव्यापार अभी भी अनैतिक देहव्यापार कानून के तहत आते हैं। हालांकि देश में समय-समय पर इस बात को लेकर उच्चस्तरीय बहसें चलती रहीं हैं कि क्यों न वेश्यावृत्ति को कानूनन वैध बना दिया जाए। यानी यह कानून व्यर्थ रहा, यह स्वीकार करने के बाद उसकी व्यर्थता के कारणों को जांचने के बजाय इस पूरे धंधे से दंड व्यवस्था अपनी जिम्मेदारी ही समेट ले? राज्य व्यवस्था स्त्रियों के हिंसक उत्पीड़न, शोषण और खरीदे बेचे जाने की पाशविक परंपरा को अपनी मूक असहाय सहमति दे दे?

एक अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में यौनकर्मियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही हैं। 1997 में यौनकर्मियों की संख्या 20 लाख थी जो 2003-04 तक बढ़कर 30 लाख हो गई। 2006 में महिला और बाल विकास विभाग द्वारा तैयार रिपोर्ट में यह भी पाया गया था कि देश में 90 फीसदी यौनकर्मियों की उम्र 15 से 35 साल के बीच है।

ऐसे भी मामले देखने में आए हैं जिसमें झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और उत्तरांचल में 12 से 15 वर्ष की कम उम्र की लड़कियों को भी वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकात्ता से सटा दक्षिण 24 – परगना जिले के मधुसूदन गांव में तो वेश्यावृत्ति को जिन्दगी का हिस्सा माना जाता है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि वहां के लोग इसे कोई बदनामी नहीं मानते। उनके अनुसार यह सब उनकी जीवनशैली का हिस्सा है और उन्हें इस पर कोई शर्मिंन्दगी नहीं है। इस पूरे गांव की अर्थव्यवस्था इसी धंधे पर टिकी है।

देश में रोजाना 20 करोड़ रूपये का देह व्यापार होता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में 68 प्रतिशत लड़कियों को रोजगार के झांसे में फंसाकर वेश्यालयों तक पहुंचाया जाता है। 17 प्रतिशत शादी के वायदे में फंसकर आती हैं। वेश्यावृत्ति में लगी लड़कियों और महिलाओं की तादाद 30 लाख है। मुम्बई और ठाणे के वेश्यावृत्ति के अड्डों से तो खण्डित रूस और मध्य एशियाई देशों की युवतियों को पकड़ा गया है। भारत में वेश्यावृत्ति के बाजार को देखते हुए अनेक देशों की युवतियां वेश्यावृत्ति के जरिए कमाई करने के लिए भारत की ओर रूख कर रही हैं।

भारतीय दंडविधान 1860 से वेश्यावृत्ति उन्मूलन विधेयक 1956 तक सभी कानून सामान्यतया वेश्यालयों के कार्यव्यापार को संयत एवं नियंत्रित रखने तक ही प्रभावी रहे हैं। इस कानून के अनुसार, वेश्याएं अपने व्यापार का निजी तौर पर यह काम कर सकती हैं लेकिन कानूनी तौर पर जनता में ग्राहकों की मांग नहीं कर सकती हैं। इस कानून का उद्देश्य भारत में यौन कार्यों के विभिन्न कारणों को रोकना और धीरे-धीरे वेश्यावृत्ति को खत्म करना है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक भी भारत में वेश्यावृत्ति अवैध है। अगर कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक स्थान पर अश्लील हरकत करते पाया जाता है तो भी उसके खिलाफ सजा का प्रावधान है। अनैतिक आवागमन (रोकथाम) अधिनियम – आईटीपीए 1986 वेश्यावृत्ति को रोकने के लिए बनाया गया है।

भारत में वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता नहीं प्राप्त है इसलिए इन्हें किसी भी तरह के विशेष अधिकार भी नहीं दिए गए हैं। वेश्याओं के भी सिर्फ वही अधिकार हैं जो आम नागिरकों को मिलते हैं। हालांकि अगर यहां वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता प्रदान कर दी गई तो वेश्याएं भी श्रमिक कानून के अंदर आ जाएंगी और उन्हें भी बाकी मजदूरों को मिलने वाले विशेषाधिकार मिल जाएंगे। समय-समय पर यहां वेश्यालयों को कानूनी मान्यता देने की मांग उठती रहती है। 10 मार्च 2014 को ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स ने एक संगठन बनाकर देश के 16 राज्यों में एक कैंपेन चलाई थी, इस कैंपेन में 90 सेक्स वर्कर्स शामिल थीं। वह इस बात की ओर सरकार और देश का ध्यान आकर्षित करना चाहती थीं कि उन्हें समाज में सुरक्षा प्राप्त नहीं है। उनका कहना था कि समाज के बाकी लोग जिस तरह से कोई त्योहार या अवसर में शामिल होते हैं हमें उस तरह से भी शामिल नहीं किया जाता। हम बाकी दूसरों कामों की ही तरह देह व्यापार करते हैं इसलिए हमें भी दूसरे कर्मचारियों की तरह पेंशन मिलनी चाहिए और यौन कार्य को भी सार्वभौमिक पेंशन योजना के तहत लाया जाना चाहिए। हालांकि इनकी किसी भी मांग को अभी तक पूरा नहीं किया गया है।

वैश्यालय तो चल ही रहें है और चलते रहेंगें। मै तो सिर्फ उस पर्दे को हटाने के लिए कह रहा हूँ जिससे क्या होगा, जानते हैं???

1-बलात्कार की घटनाऐं कम हो जायेंगी क्योंकि लोग अपनी यौन भूख मिटा पाएगें जो आज करते तो हैं पर छिपाकर। बलात्कार अक्सर अपनी जिस्मानी भूख के लिए किसी भी उम्र की बच्ची या महिला से हो जाता है। उत्तेजना में बहके कदम को छिपाने के लिए लोग अक्सर बलात्कार के बाद उस बच्ची या महिला को मार देते हैं। विज्ञान भी कहती है कि ये शारीरिक जरूरत है जिसकी पूर्ती के लिए गलत कार्य हो जाते हैं। मेरा मानना है कि उस जरूरत के लिए उचित कदम उठाए जाएं।
2- पुलिस के द्वारा की जाने वाली अनैतिक प्रताड़ना से बचाया जा सकता है क्योंकि पुलिस ऐसे झूठे आरोपों में भी फसाने को कहकर स्त्री और पुरूष का भी शोषण करती है। और इज्जत का भय दिखाकर पैसे की वसूली करती है।
3- समाज का सेक्स वरर्कस अभिन्न हिस्सा हैं पर वो समाज की मुख्य धारा से दूर हैं। सरकार ने कई प्रयास किए हैं पर वो नाकाफी हैं। इससे वो मुख्य धारा में जुड़ेंगें।
4- जबरन किसी भी लड़की या महिला को वैश्यावृत्ति के कार्य में नहीं ढकेला जा सकेगा।
5-घरेलू बलात्कार लगभग खत्म हो जायेंगें क्योंकि अतिउत्तेजना में ऐसे कृत्य हो जाते हैं। होने के बाद जब समझ में आता है कि गलत हो गया तो डरा धमका कर चुप करा दिया जाता है। बहुत से केस तो बाहर ही नही आ पाते। अगर वो आसानी से अपने शरीर की आवश्यकता बाहर पूर्ण कर लेंगें तो घरों में ऐसे कृत्य नहीं होंगें।
5- लाइसेंस देने में देश/प्रदेश की आर्थिक स्थिति को भी फाएदा होगा जैसा कि थाइलैंड। एक जानकारी के अनुसार बहरीन तेल मिलने के पूर्व आर्थिक संकट से जूझ रहा था। दुबई के क्राउन प्रिंस के कहने पर उसने कुछ समय के लिए देहव्यापार को लीगल कर दिया था। जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आया था। आकंड़ों की माने तो हमारे देश में देह व्यापार से सालाना कई हजार करोड़ रूपये का टर्नओवर होता है।

सौरभ दीक्षित मानस

नाम:- सौरभ दीक्षित पिता:-श्री धर्मपाल दीक्षित माता:-श्रीमती शशी दीक्षित पत्नि:-अंकिता दीक्षित शिक्षा:-बीटेक (सिविल), एमबीए, बीए (हिन्दी, अर्थशास्त्र) पेशा:-प्राइवेट संस्था में कार्यरत स्थान:-भवन सं. 106, जे ब्लाक, गुजैनी कानपुर नगर-208022 (9760253965) dixit19785@gmail.com जीवन का उद्देश्य:-साहित्य एवं समाज हित में कार्य। शौक:-संगीत सुनना, पढ़ना, खाना बनाना, लेखन एवं घूमना लेखन की भाषा:-बुन्देलखण्डी, हिन्दी एवं अंगे्रजी लेखन की विधाएँ:-मुक्तछंद, गीत, गजल, दोहा, लघुकथा, कहानी, संस्मरण, उपन्यास। संपादन:-“सप्तसमिधा“ (साझा काव्य संकलन) छपी हुई रचनाएँ:-विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में कविताऐ, लेख, कहानियां, संस्मरण आदि प्रकाशित। प्रेस में प्रकाशनार्थ एक उपन्यास:-घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम, “काव्यसुगन्ध” काव्य संग्रह,