कविता

काल चक्र घूमता है !

काल चक्र घूमता है, केन्द्र शिव को देखलो;
भाव लहरी व्याप्त अगणित, परम धाम परख लो!

कितने आए कितने गए, राज कितने कर गए;
इस धरा की धूल में हैं, बह के धधके दह गए !

सत्यनिष्ठ जो नहीं हैं, स्वार्थ लिप्त जो मही;
ताण्डवों की चाप सहके, ध्वस्त होते शीघ्र ही !

पार्थ सूक्ष्म पथ हैं चलते, रहते कृष्ण सारथी;
दग्ध होते क्षुद्र क्षणों, प्रबंधन विधि पातकी !

पाण्डवो तुम मोह त्यागो, साधना गहरी करो;
‘मधु’ के प्रभु की झलक को, जीते जगते झाँक लो !

✍🏻 गोपाल बघेल ‘मधु’