कविता

आज फिर तेरी यादें

आज फिर तेरी यादें
इन बादलों के सहारे मुझे घेर रही हैं ,
और झमाझम  बरस  रही हो तुम ।
और मैं दोनों बाँहें फैलाकर ,
आँखें मूँदकर  महसूस कर रहा हूँ ..
तेरा मेरे जिस्म पर बूँद – बूँद  गिरना ।
और एक विलक्षण मधुर
 संगीत का बजना ……
मेरा रोम – रोम तुझमें भीगकर ,
झरने लगा है अब तो मतलब तुम मुझे
तर कर चुकी हो … अहा !
 कितनी ठंड़क है इन बूँदों के स्पर्श में ..
तन के साथ  मन भी शीतल हो उठा है मेरा ,
मेरा सारा क्रोध ,सारी तामसिकता
धुल गई इस नमकीन पानी के साथ …।
ये बूँदें  मेरे चेहरे पर बहते हुए धीरे से
 होठों को भीगोकर गले तक फि़सलती हुई
आती हैं  तो पूरे जिस्म में
एक सिहरन सी जाग जाती है  ।
मेरे भीगे नीले पड़े औष्ठ  काँप उठते हैं ,
तुझे महसूस कर मचल उठते हैं ।
और फिर तुझे ए-कातिल घूँट पीकर
हलक से नीचे उतार लेता हूँ मैं  ,
आज मुझे छतरी की दकतार नहीं  है ,
क्योंकि तेरी यादों की घटाओं का
कोई आकार नहीं हैं …….
यदा कदा दमकती दामिनी
चौंका देती है मुझे ,
सड़क की फिसलन मेरे
 और करीब लाती है तुझे …..
सचमुच बारिश की बूँदों के बहाने
  तुझे लम्हा – लम्हा  जीना
अपने आप में “मनु” अनूठा अहसास है …
जैसे तू हर वक्त मेरे पास है ….
—  मनोज कुमार सामरिया  “मनुज”

मनु

शिक्षक , साहित्यकार जी आर ग्लोबल अकादमी जयपुर , राजस्थान - 302012 मो० 8058936129