कविता

कविता

कहीं बंद  कहीं  हड़ताले   हैं
आतंकित  विरोध  की  चाले  हैं ,
कहीं  आगजनि  कहीं  लूट  मार ,
हस्पताल  न  पहुंचे  कई  बीमार ,
स्कूल  बंद  ,बाज़ार  बंद ,
कारखानों  पे  लगे  ताले  हैं ,
जाकर  पूछो  उनके  दिल  से ,
जो  दैनिक  मजदूरी  वाले ,
उन  मुंहों  के  छिन  गए  निवाले
यह  कैसी  विरोध  की  चली  हवा ,
जनता  की  किसी  को  नहीं  परवाह ,
सब कुछ जल कर हो गया खाक,
यह कैसी दुश्मनी की है आग,
घर फूँक  तमाशा देख लिया-
कितना  पैसा  बर्बाद  हो गया
यह कैसा है इंतकाम-
यह कैसा इन्साफ,हो गया
कितने  चूल्हों  की बुझ  गई आग
न दाल रोटी ना सब्जी साग
ओह वहशियों कुछ तो शर्म  करो
कुछ परोपकार  के  कर्म  करो
उस  सर्वशक्तिमय  परमेश्वर का
दिल ही दिल में कुछ ध्यान करो,
कुछ शर्म करो कुछ शर्म करो,
या चुल्लू  भर पानी  में डूब मरो
,
इक दिन वो भी इन्साफ करेगा
नहीं  किसी  को  माफ़  करेगा
उस दिन  रोओगे गिड़गिड़ाओगे
खून के आंसू  पी कर रह जाओगे,
अपनी  करनी पर सब पछताओगे ,
सुनो, देखो–
इक वीर  जवान शहीद हो गया
दुश्मन  से सीमा पर लड़ कर
दूजा अपनों  का खून बहा रहा  ,
भारत माँ के सीने पे चढ़  कर,
– – जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845