राजनीति

दिल्ली दंगों के लिए जिम्मेदार : नागरिकता कानून के विरोध के नाम पर जहरीली बयानबाजी

जब से संसद ने नागरिकता संशोधन अधिनियम 2020 को पारित किया है, तब से उसके खिलाफ मुुस्लिम तुष्टीकरण व जातिगत आधार पर राजनीति करने वाले नेताओं की जहरीली बयानबाजी इतनी अधिक तेज हो गयी है कि उसका असर अब दिल्ली के भयावह दंगों के रूप में सामने आ रहा है। दिल्ली के दंगों में अब तक 34 लोग मारे जा चुके हैं तथा दो सौ से अधिक लोग घायल हो चुके हैं। दिल्ली की हिंसा का रूप बहुत ही भयावह था, लेकिन यह अचानक नहीं हुआ। सीएए के विरोधी जब संसद व कोर्ट में नहीं जीत पाये, तब उन्होंने सड़क पर उतरकर अपना असली चेहरा बेनकाब कर दिया है। सीएए के विरोध में बंगाल में ममता से लेकर दक्षिण में कमल हासन तक सभी दल अपनी विकृत राजनैतिक रोटियां सेंकने में लगे रहे। यह हिंसा उसी का परिणाम है।
सीएए के विरोध में हैदराबाद के सांसद ओवैसी रोज ही जहरीली बयानबाजी कर रहे थे, लेकिन किसी भी मंच से उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने की मांग तक नहीं की जा रही थी। उन्हीं की पार्टी के वारिस पठान तो उनसे भी दो हाथ आगे निकल गये थे जिसमें उन्होंने कहा था कि हम 15 करोड़ लोग सौ करोड़ लोगों पर भरी पड़ जायेंगे व पड़ रहे हैं, यदि हम लोग भी अपनी शेरनियों के समर्थन में सड़क पर उतर पड़ें तो क्या होगा? शाहीन बाग में धरने पर बैठी मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में यदि हम लोग निकल पड़े तो क्या हाल होगा? पूरे देशभर में जगह-जगह शाहीन बाग बनाये जायेंगे आदि। जब वारिस पठान जैसे लोगों के बयान सिरे चढ़ रहे हों और मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले लोग उनके बयानों के संरक्षक बन जायें, तो फिर यह तो एक दिन होना ही था। ये सभी बयानबहादुर नेता यही चाहते थे। इन नेताओं की भूख अभी तक शांत नहीं हुई है।
असदुददीन ओवेैसी और वारिस पठान जैसे नेता दूसरे जिन्ना बनना चाहते हैं। ये लोग नागरिकता कानून के विरोध की आड़ में पूरे देश मेें 1947 के जैसे दंगों का जहर फैलाना चाहते हैं। नई दिल्ली के दंगे पूरी तरह से सुनियोजित साजिश हैं। यह पूरी तरह से हिंदू विरोधी मानसिकता से परिपूर्ण सुनियोजित दंगा है। दंगा शुरू होने से पूर्व जब भाजपा के स्थानीय नेता कपिल मिश्रा ने बयान दिया था कि रास्ता खुलवाने के लिए जो कुछ करना होगा, करना पड़ेगा। बस इसी बयान की आड़ लेकर उनको केवल बलि का बकरा बनाने का प्रयास सेकूलर ताकतों की ओर से किया जा रहा है, जबकि उससे कहीं अधिक जहरीले बयान तो तथाकथित सेकुलर नेता दे रहे है। तिरंगे और संविधान की आड़ में ये लोग अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश में जहर बोने का काम कर रहे हैं। इसमें सेकुलर दलों के द्वारा पोषित सेकुलरमीडिया की भेदभावपूर्ण पत्रकारिता भी कम दोषी नहीं है। ये लोग अपने टीवी चैनलों की बहसों में कपिल मिश्रा व अनुराग ठाकुर के बयानों पर तो खूब हल्ला मचा रहे हैैं, लेकिन वारिस पठान, दिल्ली में आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्ला खान, ओवैसी पर चुप्पी साधकर अपने राजनैतिक हितों की स्वार्थ सिंिद्ध कर रहे हैं।
अब नागरिकता कानून का विरोध नहीं, केवल अपने राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति की जा रही है। यह बात अब पूरी तरह से साफ होती जा रही है कि दिल्ली के शाहीन बाग से लेकर लखनऊ के घंटाघर तक जितने भी प्रदर्शन हो रहे हैं, उनमें महिला प्रदर्शनकारियों की आड़ में अराजक तत्वों का बोलबाला है। इन प्रदर्शनकारियों का कोई नेता नहीं है। इनके असली नेता विरोधी सेकुलर दलों के तथाकथित नेता है। आज शाहीन बाग व लखनऊ के घंटाघर में जो प्रदर्शन चल रहे हैं, उनमें तिरंगे की आड़ लेकर संविधान को बचाने की शपथ खायी जा रही है और जब प्रदर्शनकारियों से बातचीत का प्रयास किया जाता है, तब वहां पर हम लेकर रहेंगे आजादी और पीएम मोदी व गृहमंत्री अमित शाह के खिलाफ विकृत नारेबाजी शुरू हो जाती है। ऐसी परिस्थितियों में इन लोगों से बातचीत नहीं की जा सकती और न ही करनी चाहिए तथा सरकार को भी ऐसे अराजक तत्वों के आगे झुकने से बचना चाहिए।
यही कारण है कि दिल्ली जल उठी। दिल्ली के जलने से बहुत सारे लोग खुश हैं। यह पूरूा घटनाक्रम अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड टंªप की भारत यात्रा से कुछ घंटों पूर्व ही चालू किया गया। दिल्ली के जलने से टुकड़े टुकड़े गैंग बहुत खुश हुआ, लेकिन उसे बहुत बड़ी निराशा भी हाथ लगी है। इन लोगों ने सोचा था कि अमेरिकी ट्रंप की यात्रा के अवसर पर वह दिल्ली में दंगाकर यह साबित करने में सफ हो जायेंगे कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता नहीं है और ट्रंप हिंसा के कारण अपनी यात्रा को छोड़कर वापस चले जायेंगे या फिर पीएम नरेंद्र मोदी पर नागरिकता कानून को वापस लेने के लिए जोरदार दबाव बनायेंगे, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो सका। अब टुकड़े-टुकडे गैंग की साजिशें बेनकाब हो रही हैं तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अब जो तेवर दिखाये हैं, उससे साफ पता चलता है कि अब दंगाईयों व उनके संरक्षणदाताओं पर कड़ा प्रहार होने जा रहा है।
देश के दंगों के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकर अजीत डोवाल दिल्ली के जनमानस के बीच सड़कों पर उतरकर बिना किसी विशेष सुरक्षा व तामझाम के सड़कों पर घूमें, हिंदू व मुसलमान सभी पक्षों के लोगों के साथ बातचीत की और जनता के बीच व्याप्त भय, झूठ व भ्रम को ध्वस्त करने का सफल प्रयास किया। उन्हीं का प्रयास है कि अब दिल्ली तेजी से शांत होती जा रही है।
दिल्ली के दंगों को थामने के सफल प्रयासों के बाद जब सेकुलर ताकतों को लगा कि अब तो उनके हाथ से सारी सियासी जमीन ही खिसक जायेगी, तो उसके बाद इन नेताओं ने एक बार फिर दंगों को लेकर अपनी शर्मनाक बयानबाजी करनी शुरू कर दी है। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती ने गृहमंत्री अमित शाह व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे तक की मांग कर डाली। प्रियंका गांधी ने दो कदम आगे जाकर अपनी मुस्लिमपरस्ती का परिचय दिया और उनके बीच जाकर धरने में शामिल हुईं। ऐसा प्रतीत होता है कि गांधी परिवार की नजरों में दिल्ली दंगों में जो पुलिसकर्मी व आईबी अफसर अंकित शहीद हुए तथा बहुत से हिंदू युवक मारे गये, घायल हुए तथा उनकी दुकानें लूटी गयी, जलायी गयीं, ऐसे लोगों के प्रति इस गांधी परिवार के मन में कोई दया का भाव नहीं है। दिल्ली के दंगों में सबसे अधिक प्रताड़ित पुलिसकर्मी व हिंदू समाज हुआ है, लेकिन उनके घावों में मरहम लगाने के लिए कोई भी तथाकथित सेकुलर दल व वारिस पठान जैसा आदमी आगे नहीं आ रहा।
अपितु इसके विपरीत ये सभी सेकुलर दलाल पूरी ताकत के साथ गृह मंत्रालय, भाजपा नेता कपिल मिश्रा और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर तथा स्थानीय दिल्ली पुलिस के पीछे ही हाथ धोकर पीछे पड़ गये हैं। जब पुलिस व सुरक्षाबलों ने दिल्ली के दंगों में कड़े तेवर अपना लिये तब औवेसी जैसे लोग बोलने लग गये कि दिल्ली पुलिस एकतरफा कार्यवाही कर रही है। दिल्ली पुलिस मुसलमानों को फंसाने के लिए बोरों में भरकर पत्थर ला रही है। औवेसी ने यह नहीं बताया कि पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों पर छतों पर से जो तेजाब फेंका जा रहा था वह क्या था और कहां से लाया जा रहा था। आज कांग्रेस, आम आदमी पार्टी सहित विरोधी दल आरोप लगा रहे हैं कि दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस मूकदर्शक बनी रही। यह बहुत ही मूर्खतापूर्ण व पुलिस बलों का मनोबल तोड़ने की साजिश है।
दिल्ली दंगों में गृहमंत्री का इस्तीफा मांगने से लेकर पुलिस बलों पर आरोप लगाने की बातें करना व केवल कपिल मिश्रा को ही दोष देना वास्तव में असली गुनाहगारों को बचाने का सेकुलर ताकतों का छदम प्रयास है। दंगों का असली दोषी तो शाहीन बाग का साजिशकर्ता है जो जल्द ही बेनकाब होगा। यह बहुत ही शर्मनाक है कि सेकुलर ताकतों ने शहीद रतनलाल व आईबी अफसर अंकित की मौत पर दःुख व्यक्त नहीं किया, अपितु इसके विपरीत सुरक्षाबलों पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं। आशा ही नहीं अपितु भरोसा है कि शाहीन बाग से लेकर दिल्ली के सुनियोजित दंगे कराने वाले लोग जल्द बेनकाब होकर जेल जायेंगे और उनको संरक्षण देने वाले राजनेताओं को भी जेल होगी।
– मृत्युंजय दीक्षित