लघुकथा

प्रेम का अंतिम आभास

भोले और उसके ससुर जी का 36 का आंकड़ा था! जबसे भोले की शादी हुई थी तब से ही उसकी सास ससुर से नहीं बनी! सास तो फिर भी मान जाती थी किंतु ससुर जी नहीं मानते थे! शायद वह मुंह के बहुत बड़बोले थे! और दिल के साफ भोले इस बात को कभी समझ नहीं पाया! किंतु कभी कबार उनकी अच्छी बातों से भोले को लगता था कि व्यक्ति तो वह अच्छे है! किंतु अपने बहु बेटों का सारा गुस्सा मुझ पर ही निकाल देते थे!
कुछ दिन पहले एक शादी के दौरान भोले और ससुर जी का एक बहुत ही अच्छा रिश्ता बन गया पहली बार भोले ने उनके साथ कुछ खाया और अच्छा बोल बोले! पहली बार उन्होंने मुझसे कहा कि बेटा मेरे साथ एक फोटो खिंचवा लो!   एक बड़बोले इंसान को गलत समझ लेना भोले कि बहुत बड़ी भूल थी! अभी कुछ दिन पहले ही भोले को पता पड़ा कि ससुर जी किसी प्राइवेट नर्सिंग होम में भर्ती हैं जहां डॉक्टरों ने उन्हें मना कर दिया है कि हालत बहुत ही गंभीर है कहीं दूसरे अच्छे हॉस्पिटल में ले जाओ! भोले मन ही मन सोचने लगा हे ईश्वर इन्हें जल्दी से ठीक कर दें!
किंतु ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था जैसे तैसे कर कर भोले और उनके साले बहू बेटी एंबुलेंस का प्रबंध करके दूसरे हॉस्पिटल में गए! ईश्वर का शुक्रगुजार था कि भोले अंतिम समय में उनके पास था!  एंबुलेंस मे ले जाते वक्त भोले की उनसे जो बात हुई उससे ऐसा लग रहा था जैसे कि उन्हें आभास हो गया है कि वह  इस दुनिया में जीवित नहीं रहेंगे! वह बार-बार यही बोल रहे थे कि सब अपना ध्यान रखना!
भोले को आज बहुत ही अफसोस हुआ कि वह उनके बड़बोले पन को नहीं समझ पाया! किंतु उनकी दी हुई शिक्षा और प्यार का आभास तब हुआ जब वह इस दुनिया में नहीं है! शायद इसे ही अंतिम प्रेम का आभास कहते हैं जब व्यक्ति प्रेम की भाषा सीख जाता है! क्योंकि प्रेम कभी मरा नहीं करता वह तो अमर है!
— अमित राजपूत

अमित कुमार राजपूत

मैं पत्रकार हूं निवासी गाजियाबाद उत्तर प्रदेश