कविता

बहुत हो चुकी मनमानी

:-बहुत हो चुकी मनमानी-:
बहुत हो चुकी राजनीति है, बहुत हो चुकी मनमानी
अब नही चलेगी एक तुम्हारी, सुन लो पाक की नानी
सीधे उठलो घर को जाओ, सैय्यद, जफर, गिलानी
वरना तुमको खानी होगी, बेगम गोली की बिरयानी
बहुत हो चुकी मनमानी….
मौज काट ली अब तक तुमने शाहीनबाग की लाली
पत्थर फेंका आगजनी की फिर भी हो भोली भाली
अब कफ़न ओढ़ लो भारत छोड़ो जाओ पाकिस्तानी
आखिर मारी जाओगी नही मिलेगा जमजम का पानी
बहुत हो चुकी मनमानी…..
सीमा से ज्यादा समझौता, है दिल्ली की नादानी
जयचन्दों को मार भगाओ, मनसूबों पर फेरो पानी
दिल्ली में सब बिल्ली बन जाएं बचे न कोई शकुनी
वंदेमातरम जय श्रीराम के नारे हो रच दो नई कहानी।।
बहुत हो चुकी मनमानी….
खुली चुनौती भेजो अब जाहिल, कुटिल लफंगों में
छूना मत बारूद भरी है इनके नेक हुक्मरानों में
विषधर बनकर घूम रहे जो, मारो इनपर नागफनी
कोई बच कर जा न पाए बिल में अपने शैतानी
बहुत हो चुकी मनमानी….

*बाल भास्कर मिश्र

पता- बाल भाष्कर मिश्र "भारत" ग्राम व पोस्ट- कल्यानमल , जिला - हरदोई पिन- 241304 मो. 7860455047