कहानी

प्यार लाया जिंदगी में नयापन

प्रेम की पुनरावृति नहीं हो सकती ,उसे पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता है, मन की वीणा केवल एक ही बार प्रेम रागिनी गाती है जैसे जाने कितने वहम पाले वर्षों से एकाकी जीवन व्यतीत करती आई थी माया। वह स्वयं के अस्तित्व को भुला चुकी थी।नीरस जीवन जीते कितना समय बीत गया। न तो उसने अपनी साज-सज्जा पर ध्यान दिया और न ही कभी आधुनिक परिधानों से प्रभावित हुई। उसे लगता था कि इस प्रकार की जीवन शैली से उसका कोई सरोकार नहीं है।उसकी उम्र की महिलाएं अक्सर उसे समय के साथ  बदलाव की सलाह देती,उसे प्रोत्साहित करतीं किंतु उसने तो जैसे इन सबसे किनारा कर लिया था।वह हंसकर उनकी बातों को टाल देती। वह “सादा जीवन उच्च विचार” की तर्ज पर जीवन व्यतीत कर रही थी। शादी,पार्टियों में बहुत मजबूरी में ही जाना पसंद करती थी। उसे समारोहों में जाने के लिए तैयार होना झुंझलाहट वाला कार्य प्रतीत होता था।लोगों की भीड़ उसे विचलित कर देती थी। लेकिन पिछले कुछ दिनों से वह अपने भीतर परिवर्तन का अनुभव कर रही थी। ऐसा अनोखा परिवर्तन जो एक ओर तो उसे आनंदित और रोमांचित कर रहा था तो दूसरी ओर मन की उथल-पुथल को बढ़ा रहा था। स्वयं को सलवार सूट पर साड़ियों में लपेटने वाली अब नए दौर के परिधानों में रुचि लेने लगी थी आईने के सामने आकर स्वयं को निहारना सजना-संवरना उसे कुछ दिनों से पुनःभाने (अच्छा लगने) लगा था। वियोग श्रृंगार को छोड़कर संयोग श्रृंगार के गीत, ग़ज़ल गुनगुनाने लगी थी। आवाज में एक खनक से आ गई थी और जिजीविषा जागृत हो गई थी। माया के अंदर आए इन परिवर्तनों को उसके साथियों ने भी अनुभव किया था।
वास्तव में कुछ दिनों पूर्व उसकी मुलाकात आनंद नामक शख़्स से हुई थी। सामान्य कद काठी वाले आनंद से उसकी बातचीत की शुरुआत नोंक झोंक से हुई थी। इस मुलाकात ने आनंद का ध्यान माया की ओर आकृष्ट कराया। यद्यपि इससे पहले भी वह बहुत सी लड़कियों से मिल चुका था किन्तु  माया में उसे जाने क्या खास दिखाई दिया? माया भी आनंद से इस पहली मुलाकात को नहीं भुला पा रही थी क्योंकि उसे लग रहा था कि नाहक ही उसने उसे भला बुरा कह दिया था। उसने अपने एक मित्र से आनंद का मोबाइल नंबर लिया और उससे हाल चाल पूछते हुए अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी। आनंद ने माया के समक्ष मित्रता का प्रस्ताव रखा जिसे वह न जाने क्यों मना नहीं कर सकी। धीरे धीरे बातों का सिलसिला बढ़ता गया। दोनों को एक दूसरे का साथ, एक दूसरे की बातें अच्छी लगती थी। एक दूसरे की परवाह भी करते थे।

माया के कहने पर आनंद ने अपने अंदर बहुत से बदलाव किए। वह माया को भी उल्लासपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित किया करता था। उसका मानना था कि रहन सहन का तरीका बदलने से सोच में भी परिवर्तन आता है। दूसरों को हम तभी अच्छे लगेंगे जब खुद को अच्छे लगेंगे।वह उसे अक्सर नए फ़ैशन और तौर तरीकों को अपनाने के लिए कहता। उसकी तारीफ़ करता।यह सब माया को अच्छा लगने लगा था। एक दिन बातों बातों में ही आनंद ने माया के सामने अपने प्यार का इजहार कर दिया और उसकी इच्छा जानी चाही। माया के लिए ये सब अप्रत्याशित था।वह कोई उत्तर न दे सकी।आनंद ने प्यार भरी बातें करना जारी रखा। पहले कुछ दिनों तक तो माया इसे हंसी में टालती रही। खुद से झूठ बोलती रही कि यह केवल दोस्ती है, प्यार नहीं। किंतु धीरे धीरे आखिर उसे भी यह स्वीकार करना पड़ा कि इस दोस्ती, इस आकर्षण, इस परवाह में कहीं न कहीं प्यार छिपा हुआ है।उसे आनंद के लिए तैयार होना, उसके मुंह से अपनी तारीफ़ सुनना, उसकी पसंद के कपड़े पहनना, उसके साथ वक्त बिताना अच्छा लगने लगा था। प्यार उसकी ज़िंदगी में नयापन लेकर आया था।

— राजशेखर भट्ट

राजशेखर भट्ट

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