सामाजिक

बच्चों द्वारा आत्महत्या की समस्या

एक रिपोर्ट के अनुसार चण्डीगड़ शहर में पिछले पांच सालों में 81 ऐसे बच्चों ने आत्महत्या की जो 20 साल से कम के थे। पी जी आई के विद्वान डाक्टर का मत है कि ऐसा बच्चे तब करते हैं जब दीर्घइच्छाओं के पूरा न होने के कारण व्यक्ति निराश हो जाता है या फिर जिससे प्यार करते हैं उस से सम्बन्ध खराब हो जाते है और एक धक्का सा लगता है। ऐसी हालत में ऐसा लगने लगता है कि अब जीवन का कोई अर्थ नहीं रहा, अब जीना बेकार है और आत्महत्या जैसा गलत कदम बच्चा ले लेता है।
मेरा मानना है कि हम माता पिता बच्चों को ऐसी स्थिति से निपटने में सक्षम बना सकते है ताकि उनको आत्महत्या जैसा कदम न उठाना पड़े। उसके लिये हमें कुछ समय देना होगा। यह काम हम दूसरों पर नहीं छोड़ सकते। सरल उपाय है कि हम बच्चे का ईश्वर में विश्वास पैदा करें। ऐसा विश्वास जिसमें बच्चा यह समझने लगे कि ईश्वर को ऐसा ही मंजूर था और इस में ही उसके लिए कुछ अच्छा था या उसकी भलाई छिपी है। उदाहरण के लिये बच्चा डाक्टरी की ऐंनटरैंस में सफल नहीं होता है तो उसका ईश्वर में विश्वास इस कदर अटल हो कि वह यह संदेश ले कि ईश्वर ने उसके लिये इस से भी अच्छा कोई और केरियर रखा हुआ है।
परन्तु यह कहने मात्र से या पढ़ने मात्र से सम्भव नहीं। आप दो बार नहीं तो दिन में एक बार बच्चे के साथ बैठकर सन्ध्या, पूजा, पाठ अवश्य करें और ईश्वर पर कुछ चर्चा भी करें। चाहे आप कितने भी व्यस्त है, आधे घटं चाहेे लाख कमा लेते हैं तब भी आधे घटें के लिये उसे छोड़ दें। क्योंकि सुख देने वाला बच्चा आपके लाखों करोड़ों रूप्यों से कहीं अधिक अच्छा होता है, यह बात वे अधिक जानते हैं जिन के पास पैसा तो है पर बच्चे उनकी नहीं मानते व मनमानी करते है।।ें जो ईश्वर पर विश्वास को अपनी शक्ति बना लेता है- मिले भरोसा आपका हे मेरे जगदीश, उसका जीवन ऐसा हो जाता है कि जैसे उसे कोई उंगली पकड़ कर ठीक जगह पर ले जा रहा है, जो उसके लिये उचित है, और गलत जगह से बचा रहा है, जो उसके लिसे उचित नहीं वहां से खीच कर वहां स ेले आता है। यदि आपने बच्चे को इस योग्य बना दिया कि वह ईश्वर को ही सब कुछ मानने लगे तो आपने उसे सब कुछ दे दिया क्योंकि फिर आपको कुछ नहीं करना ईश्वर ही उस के लिये सब कुछ करता जायेगा। जीवन साथी भी चुन देगा, उपयुक्त नौकरी और वयवसाय थी उसे मिल जायेगा बाकी सब तो इन से ही पैदा होते है। सब से बड़ी बात ऐसा बच्चा आपके लिये सुख का साघन होगा न कि दुख का। इस में कोई अतिशोक्ति नहीं कुछ बच्चे माता पिता के लिये दुख का कारण भी बन जाते हैं परन्तु इस में बच्चे की गलती कम और माता पिता की अधिक होती है।

— नीला सूद

भारतेंदु सूद

आर्यसमाज की विधारधारा से प्रेरित हैं। लिखने-पढ़ने का शौक है। सम्पादक, वैदिक थाट्स, चण्डीगढ़