गीत/नवगीत

दिल थामे चलता रहे

पाँव झूठ के जिनको सोहे, हृदय झूठ सजता रहे |
मिथ्या बोले शान बघारे, दिल थामे चलता रहे ।।

कई तरह से ठेस लगाकर, झूठ सदा ही साधते ।
साँसों की गति बोझिल होती,किन्तु सत्य से भागते
झूठ भरी कल्पित गाथाएं, सबके मन भरता रहे ।
मिथ्या बोले शान बघारे, दिल थामे चलता रहे ।।

करते है इन्कार झूठ से, असमंजस के भाव से ।
झूठ पकड़ ले न्यायालय तो,जले ह्रदय में घाव से ।।
कभी झूठ के सत्यापन से, कृत्य उसे खलता रहे ।
मिथ्या बोले शान बघारे, दिल थामे चलता रहे ।।

खड़ा हुआ जीवन सन्ध्या में, खड़ा सहारे ठूठ के ।
इस नश्वर संसार आदमी, बेबस रहता झूठ के ।।
एक ईश को भूल यहाँ सब, मिले घाव सहता रहे ।
मिथ्या बोले शान बघारे, दिल थामे चलता रहे ।।

— लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

जयपुर में 19 -11-1945 जन्म, एम् कॉम, DCWA, कंपनी सचिव (inter) तक शिक्षा अग्रगामी (मासिक),का सह-सम्पादक (1975 से 1978), निराला समाज (त्रैमासिक) 1978 से 1990 तक बाबूजी का भारत मित्र, नव्या, अखंड भारत(त्रैमासिक), साहित्य रागिनी, राजस्थान पत्रिका (दैनिक) आदि पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, ओपन बुक्स ऑन लाइन, कविता लोक, आदि वेब मंचों द्वारा सामानित साहत्य - दोहे, कुण्डलिया छंद, गीत, कविताए, कहानिया और लघु कथाओं का अनवरत लेखन email- lpladiwala@gmail.com पता - कृष्णा साकेत, 165, गंगोत्री नगर, गोपालपूरा, टोंक रोड, जयपुर -302018 (राजस्थान)