गीतिका/ग़ज़ल

इश्क की आग

उसे इश्क की आग में अब जलने दो।
कैदियों की तरह उसे भी मचलने दो।।
हो गये रूसवा जमाने में जिसके खातिर।
उस चाँद में दाग है जरा संवरने दो।।
बंद करके मुट्ठी वो दिल मेरा ले जायेगा।
राह में उसकी फूल तुम बिखरने दो।।
तमन्ना है मेरी उसकी मजार के सामने।
मेरा भी जनाजा यारों तुम उतरने दो।।
क्या पता रूह मिल जायें मौत आने के बाद।
चंद पल रूको मौत को आहें भरने दो।।
आसमां भी सर झुकायेगा चाहत पर मेरी।
चाँद तारों को जरा रौशन जहां करने दो।।
दुआओं में भले ही मांग लेना जन्नत उससे।
पहले दीदार रकीबों का शौक से करने दो।।
— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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