कविता

अवशेष

जब भी हर्फ़ों को कागज पर उतारना चाहा ,
तुम और तुम्हारे जज्बात आँखों में उतर आये /
कलम दौड़ती रही दीवारों पर चित्रभीति जैसे,
ख्यालों में जाने क्यूँ तुम गमगीन नजर आये /

अवशेष ही तो है धुंधली यादों के चहकते पन्ने ,
जैसे बादलों से चमकती बिजली नजर आ जाए/
डोर प्यार की टूटना नामुमकिन है इस जन्म में ,
मिलन की इच्छा बरबस जाने क्यों बहका जाए /

तपती दुपहरी में वो तेरा मुझसे यूँ इठलाना।,
अगले कई जन्मों तक साथ रहने का सपना सुहाना /
शरमाकर वो मेरा आँचल से मुँह को ढक लेना ,
इतराकर तेरा सहसा वो दर्द भरा गीत गाना /

याद करके तेरी बेवफाई आज भी रुला जाए ,
क्या तुझे भी हम यूँ ही कभी याद आये /
वो प्यार था या था सिर्फ शर्त को जीत जाना ,
दिल को मेरे जाने क्यों आज भी गम सताये /
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

*वर्षा वार्ष्णेय

पति का नाम –श्री गणेश कुमार वार्ष्णेय शिक्षा –ग्रेजुएशन {साहित्यिक अंग्रेजी ,सामान्य अंग्रेजी ,अर्थशास्त्र ,मनोविज्ञान } पता –संगम बिहार कॉलोनी ,गली न .3 नगला तिकोना रोड अलीगढ़{उत्तर प्रदेश} फ़ोन न .. 8868881051, 8439939877 अन्य – समाचार पत्र और किताबों में सामाजिक कुरीतियों और ज्वलंत विषयों पर काव्य सृजन और लेख , पूर्व में अध्यापन कार्य, वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन यही है जिंदगी, कविता संग्रह की लेखिका नारी गौरव सम्मान से सम्मानित पुष्पगंधा काव्य संकलन के लिए रचनाकार के लिए सम्मानित {भारत की प्रतिभाशाली हिंदी कवयित्रियाँ }साझा संकलन पुष्पगंधा काव्य संकलन साझा संकलन संदल सुगंध साझा संकलन Pride of women award -2017 Indian trailblezer women Award 2017