मुक्तक/दोहा

कुछ मुक्तक।

१)
जो पीकर आंसुओं को भी, स्वयं हीं मुस्कुराती हैं ।
करें बलिदान इच्छा सब, न जाने सुख, क्या पाती हैं ।।
हर एक चौखट की मर्यादा है,जिनके अपने हाथों में ।
वो रणचंडी, भवानी हीं, यहां नारी कहाती हैं ।।
“दीपक्रांति”
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ।

२)
समरसता का भाव लिए,
रंगो के पावन छांव तले,
होली का यह त्यौहार कहे,
जीवन में प्रीत का रंग भरे ।।
“दीपक्रांति”
समरसता के पावन पर्व होली की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ।

३)
इश्क़ में पागल वो आशिक फिर रहा है आज भी ।
शाह वो मेरा बना और मैं बनी मुमताज भी ।।
प्यार बेश़क मैने उससे हीं किया था सच है ये ।
पर ये कैसे भूल जाती, हूँ पिता की लाज भी ।।
“दीपक्रांति”
माता पिता को समर्पित ।

४)
निद्रा का अब,ढोंग रचाकर,मौन कहां तक साधेंगे ।
बाधाओं को,पीठ दिखाकर,रण से कब तक,भागेंगे ।
लक्ष हम अपना,साधेंगे,अब तोड़ तमस की सघन घटा ।
बहुत हुआ अब जगना,सोना बाधाओं को लांघेंगे ।।
“दीपक्रांति”
वर्तमान युवाओं को समर्पित ।

५)
भिगोने से पलकें,मन बड़ा हल्का होता है ।
उठता है धुआं धीरे से,मन में तहलका होता है ।।
यूं तो हरकोई पीता है गमों को खामोशी से ।
जहां में रोना,समस्या का हल कहां होता है ।।
“दीपक्रांति”
संपूर्ण समाज को समर्पित ।