कविता

अधूरापन

अधूरी चाहत ,अधूरी ख्वाहिश, अधूरी जिंदगी….
इस “अधूरे “एहसास के साथ जी रही हूं मैं!
“अधूरापन “जो पूर्णता का पर्याय बन गया मेरी खातिर,
इस के दर्द को तुम भी समझोगे एक दिन।

उस दिन जब किसी ‘अधूरे प्रेम ‘से करोगे ‘पूरी मोहब्बत’,
जरा संभल जाना उस वक्त,
दिल के झरोखे खोलने से पहले।
भटक मत जाना ,किसी की निगाहों की भूल भुलैया में।

ऐसा नहीं है कि निकल नहीं पाओगे बाहर उससे,
मगर निकल कर भी कुछ ‘अधूरा ‘सा खुद में पाओगे।
नदी की सूखी रेत से बिखर जाएंगे सारे अरमान,
जिंदगी की इस जद्दोजहद से तब कैसे निकल पाओगे?
काली स्याह रात में भी अक्स उसका नजर आएगा,
चांदनी रात में भी अगन सूरज सी वह लगाएगा,
तुम्हारे “अधूरेपन” का एहसास तुम्हें कराएगा।

उस दिन शायद तुम मेरी तड़प को समझ पाओगे
“अधूरेपन” की बेकरारी को जान पाओगे……।

— कल्पना सिंह

*कल्पना सिंह

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