कविता

आजकल खुश रहने लगी हूं मैं

किसी के ख्वाबों में सजने लगी हूं मैं,
किसी के ख्वाब सजाने लगी हूं मैं,
यह महसूस होता है मुझे….
आजकल खुश रहने लगी हूं मैं।

दिन निकलता है उसके ख्याल के साथ,
दिन ढलता है तो उसकी याद के साथ,
चांदनी रात में सितारों को तकने लगी हूं मैं,
आजकल खुश रहने लगी हूं मैं….।

जहां कहीं भी जाऊं, कहीं भी रहूं,
उसकी बातों,उसकी हंसी, उसकी आवाज,
कानों में गूंजती उसकी पुकार में खोने लगी हूं मैं,
आजकल खुश रहने लगी हूं मैं…..।

यह माना कि बहुत दूर है वह मुझसे,
दूर रहकर भी कितना करीब है मेरे,
अपने सोने ,अपने जागने ,अपने सपनों में
उसको महसूस करने लगी हूं मैं,
आजकल खुश रहने लगी हूं मैं…..।

— कल्पना सिंह

*कल्पना सिंह

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