गीतिका/ग़ज़ल

सफेदपोश 

सफेदपोश जिस्मों के काले साये है,

तोड़ के दिल संगदिल हँसते आये है।
कौन कहे किस से कहे कौन सुनेगा,
रिश्तों के ताने बाने अब कौन बुनेगा।
बेहयायी का खेल खेलने वाले भला,
कब और भला किस से शरमाये है।
जाने दो जो जाना चाहे इस दिल से,
जाने वाले कब किसी के रोके रुक पाये है।
मरहम लगाने वालों की है विपदा बड़ी,
मरहम लगाते हुए गहरी चोट खाये है।
सपनों की बातें अब हमसे ना करना,
हम अभी सपनों से जागकर आये है।
जेब खाली दिल खाली खाली आशियाना,
पूछो ना ये कि हम कहाँ क्या लुटाये है।
हमारी जिंदगी आजकल गैरों की बन बैठी,
हम तो अब तक सांसें खर्च करते आये है।
— आरती त्रिपाठी 

आरती त्रिपाठी

जिला सीधी मध्यप्रदेश