कविता

युद्ध लड़े ना जाते केवल

युद्ध लड़े ना जाते केवल, सरहद-रण मैदानों में
युद्ध लड़े ना जाते हरदम, जल-थल औ’ असमानों में
कभी-कभी घर के अंदर भी, सबको लड़ना पड़ता है
बच्चे-बूढ़े, नर-नारी को, सैनिक बनना पड़ता है
अबके दुश्मन रूप बदलकर, अपने घर में आया है
हर साँसों पर हर इक सिर पर, सूक्ष्म रूप में छाया है
बम-गोली, बंदूक ना लाठी से यह बस में आएगा
नाजायज़ चीनी वंशज है, अपना रंग दिखाएगा
आओ हम सब इस शत्रु से, मिलजुलकर संग्राम करें
धैर्य और संकल्प साध कर, चक्रव्यूह निर्माण करें
इस चीनी-शकुनि को उसके, पाँसों में ही फसाना है
कर्मयोग की अलख जलाकर, राष्ट्रधर्म अपनाना है
अपने प्राणों की रक्षा कर दुश्मन का संहार करो
राम-कृष्ण के वंशज जागो, सृष्टि का उद्धार करो।

— शरद सुनेरी