धर्म-संस्कृति-अध्यात्मलेख

धर्म आप की रक्षा के लिए है

 

धर्म को अपनाये, धर्म आप की रक्षा के लिए बना है।
कल तक जो सनातन धर्म को अन्धविश्वासी और पाखंडी बोल कर निंदा करते थे।
कहते थे कि सब ढोंग है छुत अछूत मान कर दूसरों का अपमान करतें है।
सच यह नही था, सच तो यह था कि हमारे धर्म मे शुद्धता और अशुद्धि का विशेष ध्यान रखा जाता है।आज भी रसोई घर में प्रेवश से पहले हाथ धोना,भोजन से पहले और भोजन के बाद हाथ धोना।
शौच के बाद राख से सात बार हाथ धोये जाते थे ताकि कीटाणु नष्ट हो जाये।
लघुशंका के बाद भी हाथ धोना,जगह जगह थूकने से मनाही।
रसोई के वस्त्र अलग होना और पूजा के वस्त्र अलग होना।
बाहर के कपड़ो को घर मे प्रयोग नही किया जाता था,किसी की शोक सभा मे जा कर गली में ही हाथ पैर मुँह धो कर घर मे प्रेवश करना,अगर बर्तन में पानी बच जाए तो उस को फेंक दिया जाता था।सर पर पानी डाल कर बाल गीले किये जाते,ताकि सर पर मौजद कीटाणु नष्ट हो जाए।
मेरा ये मानना है कि सनातन धर्म के संस्थापक आज के वैज्ञानिकों से अधिक ज्ञान रखते थे।
हमारे संस्कृति में आज भी बड़ो की बात में टोकना या बोलना बड़ो का अपमान करने समान माना जाता है, कारण कि बड़ो में बौद्विक क्षमता हम से अधिक होती है वो जो निर्णय लेंगे उचित ही लेंगे।
 चूक यहाँ हुई कि हम लोगों को सही से समझा न सकें और लोगों ने ज्ञान के अभाव में ज्ञान का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया।
आज वही लोग दूसरों से दूरी बनाए हुए है,हाथ नही मिला रहे,गले नही लग रहे।
अब आप बताये की जब आप लोग ये सब नियम अपना रहें है तो क्या आप छुत अछूत को बढ़ावा दे रहें है??
क्या आप के दिल मे सफाई कर्मी या अन्य लोगो के लिए हैं भावना है??
ऐसा नही है ना, बस आप सभी अपनी सुरक्षा कर रहें है और आप के दिल मे किसी के लिए हीन भावना जैसे विचार नही।
ठीक ऐसे ही हमारे सनातन धर्म में कोई हैं भावना या छुत और अछूत को बढ़ावा नही दिया जाता।
हम सिर्फ अपने धर्म का पालन करतें है और हम किसी से द्वेष नहीं रखते,न ही बड़े और छोटे का भाव रखते है।
प्रेम अपने जगह और शुद्धता अपनी जगह।
कण कण में ईश्वर व्याप्त है पर प्रभु को प्रसाद लगाने से पहले हम फल को धो कर प्रसाद लगते है, यह हमारी प्रेम भावना है कि कहि गलती से भी अशुद्ध भोजन या वस्तु का प्रसाद न लग जाये।
सनातन धर्म को समझे और फिर उसे अपनाये।
जितनी सूक्ष्मता से गर्न्थो में बातें लिखी है, उतनी विज्ञान में भी नही।
अंतर सिर्फ भाषा का है, सरल शब्दों में उदाहरण रूप में कथाओं के साथ समझाया गया है।
सनातन संस्कृति प्राचीन संस्कृति है जिसमे धर्म ही नही बल्कि पृथ्वी को माँ की तरह सम्मान दिया गया है और पृथ्वी की सुरक्षा हेतु बहुत उपाय बताये गये है।
मांस भक्षण से परहेज इसलिये किया गया है ताकि आप का लिवर खराब न हो।प्रकृति ने हमारे शरीर को ऊर्जा देने के लिए फल सब्जी और अनाज दिए है,फिर जीव हिंसा क्यों करना।
आज सभी को फिट रहना है उस के लिए व्यायाम और प्राणायाम अपना रहे है, जो कि सनातन धर्म की ही देन है।
फिट रहने के लिए डायट प्लान कर रहे है।बड़े बड़े डायटीशियन फल और सलाद लेने की सलाह देते है।सूर्य अस्त के बाद भोजन न करने की सलाह देते है।
रात्रि में  6 से 7 घण्टे की नींद की सलाह देते ह और सूर्य उदय से पूर्व जगने की सलाह दी जाती है।
यह सब हमारे धर्म मे वर्षो पूर्व लिझ गया है।अज्ञानता के कारण हमने अपना धर्म और संस्कृति छोड़ पाश्चात्य को अपनाया था।
आज पूरा विश्व सनातन धर्म को मान रहा है और अपना रहा है।
अपने प्रकृति की रक्षा करें ,प्रकृति आप की रक्षा करेगी।
शुद्धता से रहें तो ही जीवित रह पायेंगे।
शुद्धता में ही जीवन है।
संध्या चतुर्वेदी
अहमदाबाद, गुजरात

संध्या चतुर्वेदी

काव्य संध्या मथुरा (उ.प्र.) ईमेल sandhyachaturvedi76@gmail.com