कविता

खतरा

सुनसान सी गली में
एक परछाई तक नहीं है
क्यों बंद हो गए घरों में
है अंधेरा इतना ज्यादा

खतरा किससे है किसको
यह तय नहीं हुआ अभी तक
हर कोई सशंकित है दूसरे से
आखिर क्यों इतना ज्यादा

एक मकान में रहने की आदत
पहले भी थी मुसाफिरों सी
क्यों उदास हो इस कदर अब
अपने घर में इतना ज्यादा

कोई राह देखता था
कोई बाट जोहता था
साथ होकर भी सब हैं
क्यों चुपचाप इतना ज्यादा

तनहा थे पहले भी
अब कुछ और हो गए हैैं
डर में खामखां जी रहे हैं
सब लोग इतना ज़्यादा

सुनसान सी गली में
एक परछाई तक नहीं है
क्यों बंद हो गए घरों में
है अंधेरा इतना ज्यादा

— आनंद कृष्ण

आनंद कृष्ण

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