लघुकथा

संकट

”संकट जल का हो या सेनेटाइजर का, हैं दोनों ही आत्मघाती!” मोबाइल पर सुबोध ने कोरोना वायरस के कारण मॉल्स में सेनेटाइजर की लगी लंबी लाइन का चित्र भेजते हुए लिखा था.

”दोस्त, अगर हम सचेत नहीं हुए तो एक दिन यही लंबी लाइन पानी के लिए भी लगनी है!” सुकांत ने जवाब में एक चित्र भेज दिया था, जिसमें एक मासूम-सा बच्चा अनेक खाली बर्तन लिए पानी की तलाश में जा रहा था.

”बात तो सही है, हमें क्या करना चाहिए?” बोध होते हुए भी सुबोध ने सुकांत के विचार जानने चाहे थे.

”कोरोना के संकट से निपटने के लिए हम एकजुट होकर जिस तरह यह लड़ाई लड़ रहे हैं और कोरोना को हराने में जी-जान से जुटे हुए हैं, उसी तरह हमें जल-संकट से निजात पाने के लिए भी लड़ाई लड़नी होगी.” सुकांत ने जवाब में लिखा.

”सच कहा, संकल्प और संयम के बिना काम नहीं चलने का. जल की खपत करने में संयम बरतें और रेन वॉटर हार्वेस्टिंग यानी वर्षा जल संचयन के जरिए धरती मां के जल-स्तर को बढ़ाने का संकल्प लें. हमने सिडनी में इन्हीं दो मंत्रों से जल-स्तर में सुधार किया है.”

सुबोध के इस बोध पर अमल करने हेतु सुकांत सक्रिय होने चल पड़ा था.

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दिलखुश जुगलबंदी- 21 से विशेष-

हाथ मिलाने से क्यों बचना चाहिए?
ब्लॉग दिलखुश जुगलबंदी- 21 में हमारे एक पाठक-कामेंटेटर भाई कृष्ण सिंगला की विशेष प्रतिक्रिया

”हमारे शरीर के आसपास एक एनर्जी सर्कल है। 80 प्रतिशत आंखों से और बाकी की ऊर्जा हमारे हाथ-पैरों से निकलती रहती है। यह नकारात्मक और सकारात्मक दोनों ही तरह की होती है। हमारे शरीर के आसपास लगभग 3 से 4 फीट की दूरी तक हमारी ऊर्जा का प्रभाव रहता है। अनुमानत: हमारी हाइट जितनी है उतनी ही दूर तक हमारी ऊर्जा का सर्कल है। यह बात वैज्ञानिकों द्वारा प्रमाणित है कि विचार भी हमारे आसपास की चीजों को प्रभावित करते हैं।हिन्दू ग्रंथों के अनुसार यथासंभव अपने शरीर का दूसरे के शरीर से स्पर्श किए बिना ही अभिवादन की प्रक्रिया पूरी हो जाना चाहिए। नमस्कार करते समय दायां हाथ बाएं हाथ से जुड़ता है। शरीर में दाईं ओर इड़ा और बांईं ओर पिंगला नाड़ी होती है तथा मस्तिष्क पर त्रिकुटि के स्थान पर सुषम्ना का होना पाया जाता है अत: नमस्कार करते समय इड़ा, पिंगला के पास पहुंचती है तथा सिर श्रद्धा से झुका हुआ होता है। इससे शरीर में आध्यात्मिकता का विकास होता है और शांतिमय मस्तिष्क बनता है।इसके विपरीत हाथ मिलाने से हम अपने शरीर की ऊर्जा के परिमंडल में अनावश्यक रूप से दूसरे को घुसपैठ करने का अवसर प्रदान करते हैं। हाथ मिलाने से दो शरीरों की ऊर्जा आपस में टकराती है जिसका विपरीत प्रभाव न सिर्फ शरीर बल्कि मस्तिष्क पर भी पड़ता है। दूसरा यह कि कोई व्यक्ति हाथ मिलाते वक्त दूसरे के हाथों को दबाता है तो किसी के हाथ आवश्‍यकता से अधिक ठंडे और शिथिल होते हैं जिसके स्पर्श से आपके मन में नकारात्मकता का जन्म होता रहता है। तीसरा यह कि कुछ लोगों ऐसे होते हैं ‍जिनमें दूसरों की ऊर्जा ग्रहण करने की क्षमता होती है। ऐसे में आपको नुकसान हो सकता है।अत: हाथ मिलाने से जितना हो सके, आप बचें।”

-कृष्ण सिंगला

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “संकट

  • लीला तिवानी

    आज संकट सिर्फ या सेनेटाइजर का नहीं है. और भी बहुत-से संकट हैं. नेट का बहुत अधिक प्रयोग हमें नेट की कमी की ओर अग्रसर कर रहा है. बेरोजगार लोग गांव लौट रहे हैं. बार-बार हाथ धोने और बच्चों-बड़ों के घर में रहने से पानी की खपत बहुत अधिक हो रही है. मास्क और सेनेटाइजर की चोरबाजारी और बेईमानी शीर्ष पर है. सरकार अपनी तरफ से इनके निराकरण के लिए प्रयत्नशील है, हमें भी सरकार का पूरा साथ देना है. संकट हम सबके अस्तित्व का है, मिलकर संकट का मुकाबला करेंगे.

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