ब्लॉग/परिचर्चा

चाय पुराण

जिंदगी चाय है और दोस्त कुल्हड़,

बिना कुल्हड़ के चाय अधूरी है।

 

तेरा लहज़ा याद रखने को मैं चाय भी कड़वी पीता हूँ ।

कड़वी चाय में उठती भाफ को तेरी सांस समझ कर जीता हूँ।

 

चाय और चरित्र जब भी गिरते हैं, उनके दाग मिटाये नहीं मिटते हैं।

पाप कर्म जब भारी हो जाएँ, कितने भी कंधे हों, उठाये नहीं उठते हैं।

 

इस भागते हुए समय पर कैसे लगाम लगाई जाए,

ऐ वक्त आ बैठ, तुझे चाय पिलाई जाए।

 

लहज़ा जरा ठंडा रखें जनाब,

गरम तो हमें सिर्फ चाय पसंद है।

 

मुफलिसी समझो या इश्क,

हम चाय को ही शराब कहते हैं।

 

चाय जैसी उबल रही है ज़िन्दगी,

मगर हम भी हर घूँट का आनंद

चाय जैसे लेंगें।

 

बरसती बूंदों में पुराना प्यार लेके आया कोई,

मौसम सर्द है, अदरक वाली चाय लाये कोई।

 

काफी वाले तो सिर्फ फ्लर्ट करते हैं,

कभी इश्क करना हो तो चाय वालों से मिलो।

 

ज़िन्दगी में सिर्फ एक ही ख्वाहिश है,

चुल्लू भर चाय में डूब मरना है।

 

मोहब्बत को आग लगाई जाए,

और उस आग पर चाय बनाई जाए।

 

हम हर गम को चाय में डुबो कर पी गए।

पीनी थी शराब, गम वाली चाय पीकर जी गए ।

 

फुर्सत ही महंगी है, वरना सुकून तो इतना सस्ता है,

की चाय की प्याली में मिल जाता है।

 

चाय ही सच्चा प्यार है,

बाकी सब बेकार है।

 

शराब तो ऐसे ही बदनाम है,

असली नशा तो चाय में है।

 

हम चाय पीने वालों के पास,

एक चमत्कारी इलाज होता है,

मर्ज कैसा भी हो, दवा का नाम चाय होता है।

 

मजबूत रिश्ते और कड़क चाय,

धीरे धीरे बनते हैं।

 

उन्हें बहाने की तलाश थी हमसे मिलने को,

हमने भी मौका दिया, चाय अच्छी बना लेते हैं, कहके ।

 

ये सुहाना मौसम ये हलकी सर्द हवाएं,

बोलो चाय पिला रहे हो या हम जाएँ।

 

ज़िन्दगी का सबसे हसीन पल जी के आया हूँ,

आज उसके हाथ की चाय पी के आया हूँ।

 

गोरे रंग पे इतना गुरुर अच्छा नहीं है जनाब,

मैंने दूध से ज्यादा चाय के दीवाने देखे हैं।

 

सर्दी हो या हो बुखार,

चाय याद आये बार बार।

 

प्यार में जूनून है, चाय में सुकून है।

 

जैसे चाय में उबाल होता है,

वैसे ज़िन्दगी में बवाल होता है।

रविन्दर सूदन

शिक्षा : जबलपुर विश्वविद्यालय से एम् एस-सी । रक्षा मंत्रालय संस्थान जबलपुर में २८ वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य किया । वर्तमान में रिटायर्ड जीवन जी रहा हूँ ।

One thought on “चाय पुराण

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, भाई वाह!”इस भागते हुए समय पर कैसे लगाम लगाई जाए,ऐ वक्त आ बैठ, तुझे चाय पिलाई जाए।” पूरी ग़ज़ल लाजवाब है. कहीं सच्ची लेकिन कड़वी सच्चाई है, तो कहीं तंज़, हर शेर लाजवाब-बेमिसाल! हमेशा की तरह कुछ नया भी और रोचक भी. अत्यंत समसामयिक, संतुलित, सटीक व सार्थक रचना के लिए बधाई.

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