कविता

मजहब की ढाल

बात बात में मजहब की वो ढाल उठाते रहते हैं

जब देखो वो नियम कानूनों की बाट लगाते रहते हैं.

भेजा उनका सड़ा दिया राजनीति की चालों ने.

इसीलिए वे आगे रहते सभी तरह के बवालों में.

ज्यादातर तो उलझे हुए हैं जाहिलियत के दुष्चक्र में.

आसानी से फंस जाते वे विदेशियों के कुचक्र में.

मुख्यधारा के साथ बहें वो करना होगा हमें जतन.

तभी वतन में कायम होगा शांति और चैन अमन

उमेश शुक्ल

उमेश शुक्ल पिछले 34 साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। वे अमर उजाला, डीएलए और हरिभूूमि हिंदी दैनिक में भी अहम पदों पर काम कर चुके हैं। वर्तमान में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय,झांसी के जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान में बतौर शिक्षक कार्यरत हैं। वे नियमित रूप से ब्लाग लेखन का काम भी करते हैं।