लघुकथा

कोरोना की हार

 

” अरे शर्मा जी ! आप बिल्कुल अँधेरे में हो ! क्या बात है ? क्या बिजली चली गई ? ”
” अजी नहीं वर्मा जी ! कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अपने प्रिय प्रधानमंत्री जी के हाथ मजबूत कर रहा हूँ । तुमने सुना नहीं क्या उनका भाषण ? ”
” सुना तो है । लेकिन उन्होंने तो रविवार की रात , नौ बजे घर की सभी लाइटें बंद कर घर के दरवाजे या बालकॉनी में दीये जलाने का आवाहन किया है । ”
” वही तो ! अगर नौ मिनट के लिए पूरे देश में अँधेरा करके कोरोना से लड़ा जा सकता है तो फिर मैं तो कहता हूँ कि हमें पूरे देश में अभी से अँधेरा कर देना चाहिए । और कोई करे या न करे मैं तो आज से क्या अभी से ही अँधेरा किये बैठा हूँ । अब तो कोरोना पक्का हार ही जाएगा न ? ”
तभी शर्माजी के कानों में वर्माजी के घर के अंदर से टेप पर बजते कबीर अमृतवाणी के दोहे सुनाई पड़े ” पाथर पूजे हरि मिलें , तो मैं पूजूँ पहाड़ ………”
और रोष से भरे हुए वर्माजी के जेहन में सवाल गूँज रहा था ‘ 130 करोड़ हिंदुस्तानियों से नौ मिनट दीये जलाने की अपील करनेवाले मोदी जी ये कब समझेंगे कि देश की 30 प्रतिशत आबादी जिनके घरों में चुल्हे नहीं जलते वो दीये कैसे जलाएंगे ? ‘

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

One thought on “कोरोना की हार

  • मनमोहन कुमार आर्य

    रचना अच्छी है। हार्दिक धन्यवाद्। मैं यह कहना चाहूंगा कि प्रधानमंत्री जी की धन जन योजना में सभी गरीबों के बैंक खाते खुले हैं। उनको डाइरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के अंतर्गत धनराशियां भेजी गयी हैं। वह तेल खरीद सकते है। समय आने पर धन जन की सहायता राशि बढ़ाई भी जा सकती है। सादर।

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