लघुकथा

तमन्ना

नाम मंगला होते हुए भी उसका अपने मंगल के लिए कभी भी परमशक्ति या प्रार्थना पर विश्वास अटल नहीं हो पाया था. आज वही मंगला हर समय प्रार्थना-आराधना में लगी हुई अपने अंतर्मन का विश्वास जगा पा रही है!
बात ही ऐसी हो गई थी!
एक ही दिन में कोरोना पीड़ितों की मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा था. कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या भी बढ़ती जा रही थी. निगोड़ी बीमारी ही ऐसी फैल गई थी, कि अपने हाथ से अपने ही हाथ को छूने से बीमारी होने का खतरा हो गया था. सरकार ने 21 दिनों का लॉकडाउन घोषित कर दिया था. लॉकडाउन याने घर से बाहर निकलना बिलकुल बंद. घरेलू सहायकों का आना बंद हो गया सो तो अलग, लेकिन अब दवाइयां कैसे आएंगी! मंगला की सबसे बड़ी चिंता यह थी.
डिस्पेंसरियां खुली हुई थीं, पर बस-मेट्रो-ऑटो-टैक्सी सब बंद! इतनी दूर डॉक्टर को दिखाने और दवाइयां लेने कौन और कैसे जा पाएगा!
बस-मेट्रो-ऑटो-टैक्सी बंद थे न! प्रभु की दया का द्वार थोड़े ही बंद था!
”आंटी जी, सब ठीक चल रहा है न! आप दोनों बुजुर्ग अकेले हैं, कोई काम हो तो हम और हमारी गाड़ी हाजिर है, निःसंकोच बताइएगा.” कभी बात न करने वाले पड़ोसी का फोन आया
आनन-फानन दवाइयों की समस्या सुलझ गई.
कितनी हसरत थी ऐसे दिन देखने की!
न जाने क्या हुआ!
लग रहा है कि कलयुग में सतयुग आ गया है. कितना सादा जीवन हो गया. दाल-रोटी, कुछ कपड़े, एक घर बस इतना ही काफी लग रहा है. थोड़े में भी आनंद आ रहा है. सुबह दुर्गा पूजा, फिर रामायण, महाभारत, अनाप-शनाप ऑडियो-वीडियो की जगह नवरात्रि-ग्रुप में लोग एक दूसरे को भजन और सुविचारों के ऑडियो-वीडियो भेजने लग गए हैं.
घर के सारे सदस्यों की दिनचर्या ही बदल गई है. सब मिलकर काम करने लगे हैं.
सुबह होते ही कामवाली के आने-न-आने की चिंता सताने लग जाती थी. अब वह खट-खट, किच-किच खत्म! मुद्दत के बाद घर के लोग खुद बर्तन-भांडों को चमकाने लग गए हैं. झाड़ू-पोंछा करते-करते न जाने कितनी चीजें मिल जाती हैं!
ज़िन्दगी का नजरिया भी बदल गया है. जो बच्चे मोबाइल पर चिपके रहते थे, धीरे-धीरे मोबाइल छोड़कर कैरम तथा सदाबहार खेलों पर हाथ आजमाने लगे हैं.
अब हॉर्न की आवाज़ सुनाई नहीं देती तो शक होता है कि कहीं हमारे कान तो जवाब नहीं दे गए, .लेकिन जब चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई देती है, तब जान में जान आती है. इस सन्नाटे का भी अपना ही मज़ा है. बालकनी पर ऐसे-ऐसे पक्षी आने लगे हैं जो पता नहीं अब तक कहाँ छुपे बैठे थे!
हवा इतनी साफ हुई कि जालंधर से हिमाचल के बर्फीले पहाड़ दिखने लगे हैं. नदी के पानी में मछलियों की क्रीड़ा स्पष्ट दिखाई देने लगी है.
हिंसा की अहिंसा पर विजय, स्वार्थ की परिसीमा, सर्वसामान्य सज्जनों की हत्या, बलात्कार, हिंसक दंगे, डाके, बेकारी, महंगाई, हत्याएं अब चलन में नहीं हैं.
अनेक मुद्दों पर जनता को भ्रमित-गुमराह करनेवाली ताकतों का शक्तिपात हो गया है! देश में धर्म-पंथ, जात-पात, भाषा-प्रांत जैसे मुद्दों पर हमेशा अशांतता फैलानेवाली, दंगे करवानेवाली ताकतें परास्त हो गई है या किसी कोटर में छिप गई हैं!
भागदौड़ की जिंदगी में ठहराव आ गया है. शांति-संतोष सबके मन में है.
सोने चांदी धन सुंदर ड्रेस कोई काम नही आ रही. थोड़े में गुजारा हो रहा है यही तो है संतोष धन।सब कुछ था, बस यही तो नही था.
इसी की तो तमन्ना की थी मंगला ने, पर महामारी के बहाने नहीं! कोरोना के बहाने से ही सही, अच्छे दिन, अच्छे संस्कार, भारतीय-संस्कृति की झलक मिल जाने से मन सुकून पा रहा है. अनुशासन, भव्यता, दिव्यता की तमन्ना साकार होती हुई दिखाई दे रही है.
शीघ्र मंगल होने की मंगला की तमन्ना फलवती हो गई है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “तमन्ना

  • मनमोहन कुमार आर्य

    उत्तम रचना। धन्यवाद्। सादर नमस्ते।

    • लीला तिवानी

      प्रिय मनमोहन भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको हमारी यह रचना अति उत्तम लगी. इस रचना पर रविंदर सूदन की कुछ उक्तियां-

      अब घर भी नहीं घर की तमन्ना भी नहीं है,
      मुद्दत हुई सोचा था कि घर जाएँगे इक दिन.

      इतनी उदास न हो ए जिन्दगी, खोते वही हैं,
      जो कुछ पाने की तमन्ना रखते हैं !!

      मेरी न सही तो तेरी होनी चाहिए,
      तमन्ना किसी एक की तो पूरी होनी चाहिए !!

      ये मेरी थी तमन्ना कोई मेरा भी यार होता,
      जिसको मेरे हर एक गम का एहसास होता,
      जो रहता हमेशा मेरे सुख दुख का साथी,
      काश मेरे भी कोई इतना पास होता.

      रचना का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया व धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    कोरोना से जंग: पीएम मोदी की दीया, मोमबत्ती की अपील के पीछे है पूरा विज्ञान
    पीएम नरेंद्र मोदी ने 5 अप्रैल क रात 9 बजे 9 मिनट तक लोगों से अपनी लाइट बुझाकर मोमबत्ती और टॉर्च जलाने का आग्रह किया है। पीएम की इस अपील को विशेषज्ञ विज्ञान से जोड़ रहे हैं।

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