मुक्तक/दोहा

अप्रैल फूल दोहा एकादशी

हाय! मार्च क्यों कर गया, यूँ जाने की भूल

आया है सरकार फिर, आज अप्रैल-फूल // १. //

 

आज अप्रैल-फूल है, खो गया कहाँ मार्च

अँधेरे में मूर्ख दिवस, ढूँढ रहा है टार्च // २. //

 

हिन्दी में जो ‘पुष्प’ है, उसका किया अनर्थ

अंग्रेजी में ‘मूर्ख’ है, ‘फूल’ शब्द का अर्थ // ३. //

 

पागलखाने जाइये, होगा सबको हर्ष

‘अप्रैल माह’ आगरा, जाओ नूतन वर्ष // ४. //

 

मनाओ मूर्ख दिवस यूँ, सुनो लगाकर कान

पागलखाने आपका, खूब रखेंगे ध्यान // ५. //

 

पूरा जीवन आपका, मूर्ख करें सम्मान

बाँट रहे अप्रैल में, जी भर के तुम ज्ञान // ६. //

 

इस जगत में भरे पड़े, जगह-जगह विद्वान

क्यों मूर्खों के माह में, प्रकट भये श्रीमान  // ७. //

 

प्रभु का अता-पता नहीं, मूर्खों का है ध्यान

पागलखाने बन रहे, भारत क्या जापान // ८. //

 

विद्वानों का देश है, अपना हिन्दुस्तान

‘अप्रैल माह’ आगरा, घूमें तो श्रीमान // ९. //

 

जग में मूर्ख अनेक हैं, पग यूँ ही बदनाम

बिन पगड़ी विद्वान का, मूर्खों में है नाम // १०. //

 

पागलखाने घूमिये, कुछ भी लगे न दाम

पसन्द हो तो कीजिये, रजिस्टर्ड भी नाम // ११. //

— महावीर उत्तरांचली

महावीर उत्तरांचली

लघुकथाकार जन्म : २४ जुलाई १९७१, नई दिल्ली प्रकाशित कृतियाँ : (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। बी-४/७९, पर्यटन विहार, वसुंधरा एन्क्लेव, दिल्ली - ११००९६ चलभाष : ९८१८१५०५१६