कविता

उम्मीद

उम्मीदों के चिराग जलाए रखिए
हवा अभी कुछ तेज है
चिरागों को इससे बचाएं रखिए
चिरागों की लौ न बुझे
बस तेल इसमें डालते रहीए
रात चाहे कितनी भी लंबी हो
हर रात के बाद दिन का उजाला लाजमी है
गुजर जाएगा यह तूफा भी
बस आप हिम्मत न हारिए
यह है हमारे धैर्य की परीक्षा
इस परीक्षा में खरा उतरने चाहिए

— ब्रजेश

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020