कविता

मैं कन्या हूँ

सहमी-सहमी , डरी-डरी -सी
रहती थी हर क्षण
जब से माँ ने करवाया 
भ्रूण परीक्षण।
 
‘मैं कन्या हूँ’ यह जान
पापा बेचैन रहते दिन-रात
मां ने भी कर लिया फैसला
करवायेगी वह गर्भपात।
 
तड़प कर मैंने माँ से
विनती किये हजार
मत कर हत्या मेरी मां
दे हमें भी थोड़ा लाड़-प्यार।
 
सोचो ! हर कली मुरझा जाये
तो कैसे महकेगा गुलशन
तेरी प्यारी बिटिया बन
नाम तेरा ही तो करूंगी रौशन।
 
‘माँ ‘ माँ न रही जैसे
सूखी ममता की धार
अपने ही हाथों अपनी 
दुनिया रही उजाड़।
— रानी कुमारी

रानी कुमारी

शिक्षा- एम.ए. (इतिहास) सम्प्रति- शिक्षिका अभिरुचि- पढ़ना -पढ़ाना व रचनात्मक लेखन लेखन विधा- कविता, बाल कहानी, लघुकथा लेखन भाषा- हिन्दी निवास- पूर्णियाँ, बिहार।