कविता

रात के गले मिलकर

तुझसे मिलने की अधूरी ख्वाहिश लेकर,
दामन में तेरी चाहत के फूल खिलाकर,
अपनी तमन्नाओं को मन में ही दबाकर,
जी भरकर रोए हैं कल रात के गले मिलकर।

तेरे ख्वाबों के तकिए में मुंह को छिपाकर,
तेरे एहसास की चादर में खुद को लिपटाकर,
अपनी रूठी किस्मत से कुछ घबराकर,
जी भरकर रोए हैं कल रात के गले मिलकर।

दिल के जख्मों को जरा सा कुरेदकर,
दर्द को अपनी मुस्कुराहट में समेटकर,
तन्हाइयों में महफिल के रंग बटोरकर,
जी भर कर रोए हैं कल रात के गले मिलकर।

— कल्पना सिंह

*कल्पना सिंह

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