ब्लॉग/परिचर्चा

वक्त के शैदाई, रविंदर भाई: 125वें ब्लॉग की बधाई

रवि भाई, आपने ब्लॉग ‘तमन्ना (लघुकथा)’ के कामेंट में लिखा-

”आदरणीय दीदी, सादर नमन. पहले तमन्ना थी, 2020 में 2525 कर लूँ, पर मेरी तमन्ना ईश्वर ने किसी ओर पे पूरी कर दी. अब तो 125 पर ही संतोष है. संसार ईश्वर की मर्जी से चल रहा है, ईश्वर ने इसका एहसास दिला दिया है. अब तो तमन्ना है कि कोई तमन्ना ना रहे.”

रवि भाई, अत्यंत सहज रूप से लिखी गई इस बात ने हमें समय पर सचेत कर दिया, इसके लिए हम आपके बहुत-बहुत शुक्रगुजार हैं. ऐसे सस्नेह अनुग्रह के लिए आप बधाई के पात्र हैं.

रवि भाई, एक तो आपका नाम रवि, दूसरे आप कवि! वाह, क्या संयोग बना है! कहा भी गया है- ‘जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि.’ हम तो 2020 में 2525 की संकल्पना तक पहुंच ही न सके, कवि रवि की वहां भी पहुंच हो गई! आपको 125 ब्लॉग्स की बधाई. प्रभु-कृपा से यह ब्लॉग आपके 125 ब्लॉग पूरे होने के जश्न की खुशी में बधाई-स्वरूप समर्पित है.

रवि भाई, ध्यान से देखा जाए तो 2020 में 2525 की संकल्पना तक पहुंच पाने का सारा श्रेय आप सभी सम्माननीय पाठकगण एवं कामेंटेटर्स के असीम प्रेम-प्यार, स्नेह-सम्मान, साथ-सहयोग को है. हम आप सभी के अत्यंत आभारी हैं. विशेषकर आपका सहयोग तो किसी से छिपा नहीं है. जितने भी विशेष सदाबहार कैलेंडर्स या सतरंगी समाचार कुञ्ज जैसी श्रंखलाएं बनी हैं, उनमें आपकी मेहनत हमसे भी बहुत ज्यादा बढ़कर है. कभी-कभी तो लगता है कि आप सारा-सारा दिन हमारे ब्लॉग की मस्ती में मस्त रहते हैं. यह हमारा परम सौभाग्य है.

वैसे तो इसका पूरा प्रमाण देने के लिए 2525 ब्लॉग्स की आवश्यकता पड़ेगी, हम तो चावल की देग के बस एक दाने की चर्चा ही करेंगे. यह है हमारा नवीनतम ब्लॉग ‘नमन! (लघुकथा)’, जो हमारे 2525वें ब्लॉग के रूप में आया था. इस ब्लॉग में वक्त की बात चली थी और आप पूरा दिन वक्त पर शायरी करते रहे. बधाई रूप में आपके लिए प्रस्तुत है वक्त के संदर्भ में वही शायरी. तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा!

‘वक्त’ मिला तब बात करते हैं,
मूड हुआ तब बात करते हैं,
एक जमाना था जब हर वक्त बात करते थे,
अब सारे जमाने के बाद बात करते हैं.

वक्त और किस्मत पर कभी घमंड ना करो,
सुबह उनकी भी होती है, जिन्हें कोई याद नहीं करता.

खूबसूरत-सा वो पल था,
पर क्या करें, वो कल था.

वक्त आता है तो बदल जाती है हर सूरत,
चाँद भी तो हमेशा अधूरा नहीं रहता.

सेल्फी निकालना तो सेकेंड्स का काम है,
वक़्त तो इमेज बनाने मे लगता है.

घड़ी की फितरत भी अजीब है,
हमेशा टिक-टिक कहती है,
मगर न खुद टिकती है और न ही दूसरों को टिकने देती है.

लगता था ज़िन्दगी को बदलने में वक़्त लगेगा,
पर क्या पता था बदलता हुआ वक़्त ज़िन्दगी बदल देगा.

वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर,
आदत इस की भी आदमी जैसी है.

वक़्तऔर समझ दोनों एक साथ,
खुश किस्मत लोगों को ही मिलते हैं,
क्योंकि अक्सर वक़्त पे समझ नहीं होती,
और समझ आने तक वक़्त नहीं रहता.

माँ की लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं,
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफनाने का भी वक़्त नहीं.

वक़्त की आँच में पत्थर भी पिघल जाते हैं,
खुशी के लम्हे गम में बदल जाते हैं,
कौन करता है याद किसी को यारो,
वक़्त के साथ खयालात भी बदल जाते हैं.

वक़्त से ज्यादा ज़िंदगी में, कोई भी अपना और पराया नहीं होता.
अगर वक़्त अपना हो तो सभी अपने होते हैं,
और अगर वक़्त ही पराया हो तो अपने भी पराये हो जाते हैं.

कभी एक लम्हा ऐसा भी आता है,
जिसमें बीता हुआ कल नज़र आता है,
बस यादें रह जाती हैं याद करने के लिये,
और वक़्त सब कुछ लेके गुज़र जाता है.

समय बहुत ज़ख्म देता है,
क्योंकि घड़ी में फूल नहीं ‘कांटे’ होते हैं.

वक्त नूर को भी बेनूर बना देता है,
वक्त फ़कीर को भी हुजूर बना देता है,
वक्त की कद्र कर ऐ बंदे,
वक्त कोयले को भी कोहिनूर बना देता है.

वक्त दिखाई नहीं देता,
पर दिखा बहुत कुछ देता है.

समय के पास इतना समय नहीं,
कि आपको दोबारा समय दे सके.

यूँ तो पल भर में सुलझ जाती है उलझी ज़ुल्फ़ें,
उम्र कट जाती है पर वक़्त के सुलझाने में.

वक़्त-सी फ़ितरत नहीं मेरी के बुलाने से भी ना आऊँ,
आप आगाज़ करो हम अंजाम तक साथ रहेंगे.

बस ज़िन्दगी के उसूलों पे जी रहे हैं,
वक़्त बदल रहा है, हम भी बदल रहे हैं.

वक़्त की अदालत में हर कोई गुनहगार है,
आज मुझे सजा मुकर्रर हुई कल को तेरा इंतज़ार है.

बेहतर है के वो रिश्ते टूट जाएँ जो वक़्त की डोर से बंधे हों,
जो बदलते वक़्त के साथ भी ना बदले वही अपना है.

वक़्त की किताब के कुछ पन्ने उलटना चाहता हूँ,
मैं जो कल था आज फिर वही बनना चाहता हूँ.

अपने भी अजनबी हो जाते हैं वक़्त के साथ,
कुछ अजनबी भी अपने हो जाते हैं वक़्त के साथ.

वक़्त और हालात तो बदल ही जाते हैं मगर,
दर्द तब होता है जब वक़्त के साथ ज़ज़्बात भी बदल जाते हैं.

प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है,
नए परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है.

जो लिबासों को बदलने का शौक़ रखते थे,
आखिरी वक़्त ना कह पाए क़फ़न ठीक नहीं.

वक़्त के साथ-साथ चलता रहे,
यही बेहतर है आदमी के लिये.

उनका भरोसा मत करो, जिनका खयाल वक़्त के साथ बदल जाये,
भरोसा उनका करो जिनका खयाल वैसे ही रहे, जब आपका वक़्त बदल जाये.

जिसको जो कहना है कहने दो, अपना क्या जाता है,
ये तो वक्त वक्त की बात है, और वक्त सबका आता है.
-रविंदर सूदन

 

रवि भाई, वक्त की इस आपकी शायरी ने हम सबको और विशेष रूप से कुसुम सुराणा जी को सक्रिय कर दिया. उनके सौजन्य से हमें निम्न हीरे-मोती मिले-

आज खिले कुसुम,सूरज के ढलते ही मुरझा जाएंगे!
बुलंदियों पे जमा हुजूम, शाम-ए-गम में बिखर जाएगा!

कहने को बहुत कुछ था, कह नहीं पाए!
जरा-सी तपिश वो जीते जी, सह नहीं पाए!

वक़्त की ठोकर में, पत्थर ही नहीं हम भी थे!
चोट उन्हें भी लगी, वो छुपा न पाए, हम बता न पाए!

दौलत और शोहरत जब हाथ में हाथ डाले खड़ी थी,
दूर-दूर के रिश्तेदार भी सेल्फी लेते नज़र आये!!
जैसे ही दोनों ने निगाहें फेरीं,
साया भी साथ छोड़ रफू चक्कर हो गया!

वक़्त वक़्त की बात है!
कभी हम उनके पहलू में थे, आज कोई और है!

वक़्त कभी अपना भी होगा, उम्मीद थी हमें!
पर वक़्त ने कभी अपनापन दिखाया ही नहीं.

वो रंग बदलते है गिरगिट की तरह,
फिर भी तुर्रा यह कि हम तुम्हारे अपने हैं.

–कुसुम सुराणा

रवि भाई, आपके बारे में कहने को बहुत कुछ है. आप हमारे ही नहीं सबके ब्लॉग पर शेरो-शायरी और चुटकुलों की महफिल सजाते हैं. बाकी बातें हम और हमारे सम्माननीय पाठकगण एवं कामेंटेटर्स कामेंट्स में कहेंगे. इस ब्लॉग को तो वक्त के नाम ही रहने देते हैं, जो आपके लिए 125वें ब्लॉग का वक्त ले आया. आपको 125वें ब्लॉग की कोटिशः हार्दिक बधाइयां व शुभकामनाएं.

हम हैं लीला तिवानी के साथ अपना ब्लॉग के सब साथी

 

रविंदर सूदन की जय विजय साइट
https://jayvijay.co/author/ravindersudan/

रविंदर भाई की अपना ब्लॉग की साइट है-
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/author/ravisudanyahoo-com/

कृपया इस ब्लॉग को भी पढ़ें-

रविंदर भाई: शतकीय ब्लॉग की बधाई

https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/ravinder-bhaee-shatakeey-blog-kee-badhaee/

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “वक्त के शैदाई, रविंदर भाई: 125वें ब्लॉग की बधाई

  • लीला तिवानी

    रवि भाई, आपकी कलम की धार इस आलेख से कहीं ज्यादा पैनी है, हम तो बस बस स्नेह-प्रेम के दो शब्द ही लिख पाए हैं. वैसे किसी को हमारे कवि भाई रवि की पहुंच देखनी हो तो तमन्ना (लघुकथा) के कामेंट्स देख सकता है. तमन्ना पर इतना कुछ सोचा-लिखा जा सकता है, हमें पता न था और आपका ‘चाय पुराण’ तो गज़ब ही ढा गया है. शेष बाद में अभी तो आपको एक बार पुनः 125वें ब्लॉग की कोटिशः हार्दिक बधाइयां व शुभकामनाएं.

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