कविता

सत्यमेव जयते

सत्य की डगर कोई है नहीं आसान
बड़ी पथरीली और कांटों से भरा है यह रास्ता
चलना नहीं आसान इस डगर पर
विरले ही इस पथ के होते हैं अनुगामी
बाकी तो है सुविधाभोगी
हा आखिर में होती है सत्य विजय की यह ठीक
पर धैर्य कितना है यह देखना है वाजिब
राजा हरिश्चंद ने पकड़ी थी यह
पहले राज्य खोया
फिर बेचा स्त्री बच्चे को भी इसकी खातिर
नीलम किया अपने आप को
स्वीकार की कालू डोम की दासता
डोम हुए शमशान के
मुर्दे जलाने का काम किया
सत्य की खातिर पुत्र की अंतयेष्टि भी न करने दी
बिना अदायगी शमशान के शुल्क की
भार्या से उसके तन के एक मात्र वस्त्र से भी आधा हिस्सा कफ़न का मांग लिया
सत्य की खातिर एक राजा डोम हो गया
अंगनित कठिनाइयों को सहा बस एक सत्य की खातिर
अंत जीत हुई सत्य की
एक भारी कीमत चुकाने के बाद
सत्य कोई इतना सस्ता नहीं
कि खरीद ले हर कोई
बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है इसके एवज में
पर सांच को आंच नहीं
डगर कोई आसान नहीं

— ब्रजेश

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020