लघुकथा

लॉकडाउन

रसोई का सारा काम निपटा कर रिद्धिमा अपने पति और पांच वर्षीय बेटी रूही के साथ कैरम खेलने लगी। सामने टीवी पर कोरोनावायरस से संबंधित न्यूज चल रही थी। दिनों दिन बढते कोरोना पाज़िटिव केस से व्यथित होकर रिद्धिमा के मुंह से निकल गया- न जाने कब ये कोरोना खतम होगा और और कब यह लॉकडाउन खुलेगा।

कभी नहीं खुले ये लॉकडाउन और कोरोनावायरस भी ना जाये । रूही ने बोला।

पति-पत्नी दोनों चौंक पडे. ऐसा क्यों मेरे बच्चे – अमन ने पूछा

क्योंकि इस कोरोनावायरस के कारण लॉकडाउन हुआ और आप दोनों ऑफिस नहीं जा रहे हो और आया आंटी की भी छुट्टी चल रही है। कोरोनावायरस के ख़त्म होने पर लॉकडाउन खुल जायेगा और आप दोनों ऑफिस चले जाओगे शाम को देर से आओगे मुझे आया आंटी के साथ रहना पड़ेगा। आप दोनों थक जाते हो, ठीक से बात नहीं करते मेरे साथ खेलते भी नहीं। मुझे आया आंटी के साथ नहीं, आप दोनों के साथ रहना है

हम दोनो आवाक रह गये इस तरह कभी सोचा ही नहीं। इस भागती दौड़ती जिंदगी में दो पल ठहरकर कभी सोचा ही नहीं हमारी बच्ची को हमारा साथ चाहिए। खिलौने और आया से ज्यादा उसे मां की जरूरत है लॉकडाउन से जीवन में ब्रेक लगने के कारण ही परिवार का साथ उसकी अहमियत पता चली। अब रिश्तों के स्नेह के धागे को बचाने और मजबूत बनाने के लिए उसे नौकरी की नहीं, घर पर रहकर समय देने की जरूरत है। समय पर खाद पानी ना मिले तो महंगे पौधे भी सूख जाते हैं, फिर ये तो रिश्ते हैं, समय के साथ कब फीके पड जाएं। रिद्धिमा मन ही मन रिजाइन करने का निर्णय ले चुकी थी। वहीं अमन भी ज्यादा से ज्यादा समय परिवार के साथ बिताने के लिए सोच रहे थे।

— शोभा रानी गोयल

शोभा गोयल

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