कविता

पिता

पिता परिवार की प्राणवायु है
पिता परिवार के प्रत्येक सदस्य की आयु है

पिता से मिले परिवार को शक्ति -संबल है
पिता बड़े-बड़े संकटों में बनते ढाल है

पिता का प्रेम सदा अदृश्य ही रहता है
पिता हंसते-हंसते कड़वा जहर पीता है

पिता बहाकर निज खून-पसीना
पिता लाता है परिवार कि लिए दो जून का खाना

पिता का साथ पाकर संतान बने योद्धा महान
पिता के चरणों में ही है सारा जहान

पिता से ही गृहस्थी की बिंदी चमके
पिता से ही माँ का माथा दमके

पिता से ही माँ की चूडियाँ खनकें
पिता से ही बच्चों की किलकारियां गूँजें

पिता से बड़ा नहीं कोई भगवान
पिता परिवार की अमिट पहचान

— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111