कविता

कविता – वाह रे , कोरोना !

कविता –  वाह रे , कोरोना  !
वाह रे , कोरोना ! तूने तो गजब कर डाला ,
छोटी सोच और अहंकार को ,
तूने चूर-चूर कर डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ……
पैसो से खरीदने चले थे दुनिया ,
ऐसे नामचीन पड़े है होम आईसोलोशन में ,
तूने तो पैसो को भी , धूल-धूल कर डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ……
धुँ-धुँ कर चलते दिन रात साधन ,
लोगों की चलती भागमभाग वाली जिंदगी ,
तूने एक झटके में सारा जहां , सुनसान कर डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ……
दिहाड़ी करने वाले मजदूर ,
खेत पर काम करते गरीब किसान ,
तूने तो इनको बिल्कुल , कंगाल कर डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ……
अमीरी मौज कर रही बंद कमरों में ,
गरीबों को अपने घर आने के खातिर ,
कोसों पैदल चलने को , मजबूर कर डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ……
लोग कहते थे सौ-सौ रुपये लेती है पुलिस ,
देखो !  सुने चौराहों पर खड़ी हमारी सुरक्षा खातिर  ,
हम सब लोगों का , विचार बदल डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ……
डॉक्टर को कहते थे तुम लुटेरे ,
आज फिर इस वैश्विक महामारी में ,
धरती का भगवान है डॉक्टर , ये साबित कर डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ……
सफाई कर्मियों को नीचता से देखते हो ,
देखो ! आज कैसे सेनिटराईज कर रहे भारत को ,
इन्ही लोगों ने भारत का  , हाल बदल डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ……
शिक्षक तो होते ही है सबसे न्यारे ,
आज दिन रात लगे है हम सबको बचाने ,
हमारे दिल में और सम्मान बढ़ा डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ……
कोरोना से दिन रात लड़ रही सरकार ,
राजनीति को ताक में रख लॉकडाउन से ,
इस कोरोना महामारी पर शिकंजा कस डाला ।
वाह रे , कोरोना  ! …..
सिर्फ जनता हित के लिए ही तो खड़े है तत्पर ,
पुलिस , डॉक्टर , सफाईकर्मी , शिक्षक और प्रशासन ,
इन पांचों ने तो अपना सब सर्वस्व दे डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ……
कोरोना हारेगा हमारी एकता से ” जसवंत ” ,
फिर देखना दुनिया देखेगी , कैसे भारत देश ने ,
कोरोना महामारी का सत्यानाश कर डाला ।।
वाह रे , कोरोना  ! ……
— कवि जसवंत लाल खटीक

जसवंत लाल खटीक

रतना का गुड़ा ,देवगढ़ काव्य गोष्ठी मंच, राजसमन्द