कविता

दिलखुश जुगलबंदी- 24

देखो-देखो कायर भाग रहा है

दुनिया की निगाहों में भला क्या है बुरा क्या,
ये बोझ अगर दिल से उतर जाए तो अच्छा
-सुदर्शन खन्ना

मेरे अच्छे वक़्त ने दुनिया को बताया कि मैं कैसा हूँ
और मेरे बुरे वक़्त ने मुझे बताया कि दुनिया कैसी है.
-रविंदर सूदन

खुलते नहीं हैं रोज़ दरीचे बहार के,
आती है जान-ए-मन ये क़यामत कभी-कभी.

मेरे साथ जब मैं खुद खड़ा होता हूँ,
तब मैं क़यामत के हर तूफ़ान से बड़ा होता हूँ.

ग़ौर से पढ़ सको तो समझोगे,
एक दिलकश किताब है रविन्दर.

खाली पन्नों की तरह दिन पलटते जा रहे हैं,
खबर नहीं कि ये आ रहे हैं या जा रहे हैं.

सुनो अब यूँ ही चलने दो न कोई शर्त बाँधो,
मुझे गिर कर सँभलने दो न कोई शर्त बाँधो.

आसमान में उड़ने की मनाही नहीं है,
शर्त इतनी है कि ज़मीन को नजर अंदाज़ न करें.

राहों से जितने प्यार से मंज़िल ने बात की,
यूँ दिल से मेरे आप के भी दिल ने बात की.

कई जीत बाक़ी हैं कई हार बाक़ी हैं
अभी ज़िंदगी का सार बाक़ी है.
यहाँ से चले हैं नयी मंज़िल के लिए,
ये तो एक पन्ना था,
अभी तो पूरी किताब बाक़ी है

ये लफ़्ज़ आइने हैं मत इन्हें उछाल के चल,
अदब की राह मिली है तो देख-भाल के चल.

लफ्ज़ की शक्ल में एहसास लिखा जाता है,
यहाँ पानी को भी प्यास लिखा जाता है,
मेरे जज़बात से वाक़िफ़ है मेरी कलम,
मैं प्यार लिखूं तो उस बेवफा का नाम लिखा जाता है.

शहर में मज़दूर जैसा दर-ब-दर कोई नहीं,
जिस ने सब के घर बनाए उस का घर कोई नहीं.

आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए,
आदमी मज़दूर है राहें बनाने के लिए.
तथा
अगर इस जहाँ में मजदूर का न नामों निशाँ होता,
फिर न होता हवामहल और न ही ताजमहल होता.

चाहिए ख़ुद पे यक़ीन-ए-कामिल,
हौसला किस का बढ़ाता है कोई!

मुश्किलें जरुर है, मगर ठहरा नहीं हूँ मैं,
मंज़िल से जरा कह दो, अभी पहुंचा नहीं हूँ मैं.

मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देखकर,
उस ने दीवारों को अपनी ओर ऊँचा कर दिया

हाथ-पैर टूट जाएं कोई बात नहीं,
दिल टूट जाये कोई बात नहीं,
बस हौसले ना टूट जाएं ख्याल रखना,
ख्वाब टूटने वाली यह रात नहीं.
तथा
टूटे हुए प्याले में जाम नहीं आता !
इश्क़ में मरीज को आराम नहीं आता !
ऐ बेवफा दिल तोड़ने से पहले ये सोच तो लिया होता !
कि टूटा हुआ दिल किसी के काम नहीं आता !!

मैं एक बात बताता मगर बुज़ुर्गों ने,
हर एक बात बताना ग़लत बताया है.

बेहद है बुजुर्गों में अनुभव, सुझावों की ये खदान हैं,
इनके आस-पास होने से ही जीवन में रहती जान है.

अपना ज़माना आप बनाते हैं अहल-ए-दिल,
हम वो नहीं कि जिन को ज़माना बना गया.
-सुदर्शन खन्ना

या वो थे खफा हम से, या हम थे खफा उनसे,
कल उनका ज़माना था आज अपना ज़माना है
और
माया का बाजार है यह जग,
कदम कदम पर धोखा है,
करो कमाई नाम की,
यही (लॉकडाउन) सुनहरा मौका है.
-रविंदर सूदन

लॉकडाउन की इस विकट बेला में
सख़्तियां बढ़ रहीं हैं आलम की, हौसले मुस्कुराते चलते हैं
वक़्त की गर्दिशों का ग़म न करो, हौसले मुश्किलों में पलते हैं,
-सुदर्शन खन्ना

वक़्त की गर्दिशों से हमने चिराग जलाए हैं,
आग लगा कर अँधियारों के दीप रोशन कराए हैं,
कल रात कोरोना को भागते हुए देखा था,
मन ने कहा
देखो-देखो कायर भाग रहा है,
अँधियारों के रोशन दीपों के आगे,
कहो तो किसीके पांव कब टिक पाए हैं,
जो कोरोना के टिक पाएंगे!
-लीला तिवानी

आज सिंधी भाषा दिवस है, समस्त सिंधी समुदाय को सिंधी भाषा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “दिलखुश जुगलबंदी- 24

  • लीला तिवानी

    कितनी लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ी थी इस दिलखुश जुगलबंदी के लिए! क्या पता था लॉकडाउन होगा, सबको घर के अंदर रहने का फरमान हो जाएगा और दिलखुश जुगलबंदी की महफिलें आबाद होने लगेंगी. हम रामायण-महाभारत देख रहे होते हैं, तब भी हमारे ब्लॉग पर यह महफिल यों ही जमी रहती है. ऐसे ही दिलखुश जुगलबंदी की महफिल सजाते-सजाते कोरोना हारकर भागते हुए दिख जाए तो कितना अच्छा हो. भला दिलखुश जुगलबंदी के दिलखुश तीरों के सामने कोरोना के तो क्या किसीके भी पांव कब तक टिक पाएंगे!

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