गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जहां कोई बागबाँ न होगा |
ज़मीन पे आसमां न होगा |

जो छोड़ बैठे उमीद दामन –
तो फिर कहीं आशियाँ न होगा |

न पा सकेगा वो मंज़िलों को-
अगर कोई रहनुमा न होगा |

ग़मो के बादल नहीं छटेगें –
अगर कोई राज़दा न होगा |

जहाँ वही आसमां वही है-
गुज़र चुका कारवां होगा |

अगर न बदला मिजाज़अब भी –
ये तयशुदा ग़म बयाँ न होगा |

रकीब बन कर जो फिर रहे हो-
मेरे तेरे दरमिंयाँ न होगा |

है अलहदा ये वतन हमारा-
के हिंद सा साएबाँ न होगा |

जमात में बैठ रोग बांटे-
के इन के जैसा मियां न होगा |

वतन परस्ती जो भूल बैठे-
यूं उन से बढ़ खाकदाँ न होगा |

‘मृदुल’ दिलों में भरा ज़हर क्यों-
यूं इस तरह शादमां न होगा |
मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’
लखनऊ

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016