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ग़ज़ल
समय ने सिलसिला तोड़ा हमारा परिंदों की तरह जोड़ा हमारा बड़ा बाज़ार है पर आदमी हम नहीं है मूल्य क्या थोड़ा हमारा पगों से नापते धरती बुढ़ाये रखा है काठ का घोड़ा हमारा भरोसे रहबरों के था रसातल हमीं ने रास्ता मोड़ा हमारा हमें हमसे बचाने आ न दुश्मन हमारा जिस्म है कोड़ा हमारा अलग […]
ग़ज़ल
लबों पे उनके हम अपनी कहानी छोड़ आए हैं, जो ना मिट पाएगी ऐसी निशानी छोड़ आए हैं दिल भी पास है अपने धड़कता भी है रह-रह के, किसी के पास पर इसकी रवानी छोड़ आए हैं हमें मरना ही था प्यासा सहरा-ए-दर्द में क्योंकि, हम उन झील सी आँखों में पानी छोड़ आए हैं […]
ग़ज़ल
विरल है लोग करते जो रहबरी अब करेगी कुछ नया यह लेखनी अब | नया कुछ यह जमाना मांगता है अमीरी की मिटा दो दुश्मनी अब | मिलाया धूल में मेरा भरोसा करे कोई इशारा जिंदगी अब | किया जो कुछ नहीं स्वीकार रब को मनाने रब, करें क्या आदमी अब | किया विश्वास पूरी […]