गीतिका/ग़ज़ल

एैसी नींद बताओ कोई…….

रात की बेहोशी का तुम, नींद जैसा नाम न दो
ग़म सारे गायब हो जायें, एैसा कोई जाम न दो
रात की बेहोशी का तुम…………………

दर्द बहुत मिलते हैं दिन में, रात को मुर्छा आ जाती
बंजर में हरियाली भर दे, एैसी बरखा आ जाती
शाम से सब सो जाते हैं, एैसा कह के रूलाओ न-
पल भर में मिट जाये जो, एैसा कोई काम न दो
रात की बेहोशी का तुम…………………

जागना है इस जग में, रातों को आने जाने दो
दर्द से सब जिंदा हैं अभी, खुशियाँ इनको मनाने दो
बेहोशी के छटने से, इक सफर नया मिल जाता है –
पल भर में जो मिल जाये, एैसा कोई धाम न दो
रात की बेहोशी का तुम…………………

पंक्षी के कलरव सुनना है, नया सवेरा देखना है
अब तक जो पौधे रोपे हैं, उन्हे घनेरा देखना है
नींद का अपना (राज) कोई है, चार लोग लेकर चलते
एैसी नींद बताओ कोई, जिसमें राम का नाम न हो
रात की बेहोशी का तुम…………………

राज कुमार तिवारी (राज)

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782