कविता

बदनाम कोरोना को करो ना…..

वक्त कितना भी बुरा हो, गुजर जाना ही होता है।
हर जख्म की फितरत में, भर जाना ही होता है।
बादल कई फटते हुये, देखे हैं दुनियाँ में –
थोड़ी सी खुदाई फिसली, फिर संभल जाना ही होता है।।
वक्त कितना भी बुरा हो………..

अदना बन गये वो, खुद को खुदा समझने वाले
हर मुसीबत में साथ दूंगा, सबसे से कहने वाले
दहलीज नही लांघी घर की, खैर भी न पूँछ सके-
त्रास में जो साथ दे, वो अपना ही होता है
वक्त कितना भी बुरा हो………..

कहर कुदरत का बरपा है, तेरी हर चाल झूँठी थी।
जख्म बहुत अब तक दिये, तुझसे वो रूठी थी
बदनाम कोरोना को करो ना, ये ठोकर मिली सबको-
हर ठोकर के बाद (राज) संभल जाना ही होता है।।
वक्त कितना भी बुरा हो………..

नाखुदा अब इस खुदाई, के खुदा अब बन गये।
कस्ती फंसी मझधार में, तूफानों से वो ठन गये।
अपनी नामी से तू कह दे, चीरता जाऊंगा मै –
रोज भंवरों से निकलकर, साहिल पे जाना ही होता है।।
वक्त कितना भी बुरा हो………..
राजकुमार तिवारी (राज)

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782