लघुकथा

जानकी का घर

कई वर्ष पश्चात दूरदर्शन पर धारावाहिक ‘रामायण’ के पुनः प्रसारण से कौशल्या देवी बहुत खुश थीं। सुबह के नौ बजते ही टेलीविजन के सामने हाथ जोड़ कर बैठ जाती थीं। आज रामायण देखते हुए वह अत्यंत भावविभोर हो रही थीं। सीता एवं लक्ष्मण को राम के संग वन जाते हुए देखकर कौशल्या देवी की आंखों से अश्रु प्रवाहित होने लगे।
धारावाहिक रामायण के आज का एपिसोड समाप्त होने के पश्चात कौशल्या देवी अपने सूखे गले को तर करने के लिए अश्रुओं को आंचल से पोछते हुए रसोई घर में प्रवेश करती हैं। वहां की स्थिति देखकर वह आग बबूला हो उठती हैं और अपनी बहू को पुकारते हुए बहू के कमरे में घुस जाती हैं। जहां उनकी बहू जानकी एकाग्रचित्त होकर पढ़ रही होती है। अपनी बहू को पढ़ता हुआ देखकर कौशल्या देवी का क्रोध और बढ़ जाता है।
“अच्छा, तो महारानी दूध उबलता हुआ छोड़कर यहां कलेक्टर बनने की तैयारी में लगी है। उधर सारा दूध उबल कर पूरे रसोई में फैल चुका है। अब कोई चाय भी कैसे पिएगा ?”
दूध उबल कर गिर जाने की बात सुनते ही जानकी रसोई घर की तरफ भागती है। वहां पहुंचकर वह तुरंत रसोई की सफाई में लग जाती है।
“इससे एक भी काम ठीक से नहीं होता है। बेहोश होकर सारा काम करती है।” रसोई की ओर आते हुए कौशल्या देवी ने कहा।
“मां जी, भूल हो गई। मैंने सोचा जब तक दूध गर्म होगा, तब तक थोड़ी पढ़ाई कर लेती हूं। वैसे भी पढ़ाई के लिए समय तो मिल ही नहीं पाता है। घर का काम निपटाना, फिर बच्चों को संभालना, इन्हीं सब चीजों से फुर्सत नहीं मिल पाती है।” जानकी ने सरलता से कहा।
“काम नहीं करेगी तो क्या करेगी ? क्या तेरे बाप ने तेरे लिए यहां नौकर लगा रखे हैं ? बीए तो पास कर चुकी है। अब कितना पढ़ेगी ? तेरे पति को तो हम लोगों ने इतना पढ़ाया, लेकिन फिर भी अब तक वह सरकारी नौकरी नहीं ले पाया ? ज्यादा पढ़कर तू क्या कलेक्टर बन जाएगी ?” कौशल्या देवी ने क्रोधपूर्ण व्यंग्यात्मक लहजे में कहा।
“पढ़ाई तो ज्ञानार्जन के लिए किया जाता है एवं ज्ञान का सरकारी नौकरी से कोई विशेष संबंध नहीं है। फिर भी मेरे पति सरकारी नौकरी के लिए प्रयत्न तो कर ही रहे हैं। रावण द्वारा सीता का हरण कर लिए जाने के पश्चात प्रभु श्री राम को भी सीता को प्राप्त करने के लिए अत्यधिक प्रयत्न करने पड़े थे। इस कारण से प्रभु श्रीराम के ज्ञान रूपी सामर्थ्य पर संदेह तो नहीं कर सकते। श्री राम के केवल एक बाण से तो रावण का भी वध नहीं हो सका था। किंतु इससे भगवान श्री राम की शक्ति पर क्या कोई तनिक भी संदेह कर सकता है ?” जानकी ने अत्यंत सहजता से जवाब दिया।
जानकी की बातें सुनकर कौशल्या देवी अत्यंत क्रोधित हो उठीं और जानकी को धमकाते हुए कहने लगीं – “कल की जन्मी हुई छोकरी, तू मुझे रामायण का प्रवचन देती है। आज से तू मेरे और मेरे पति के लिए खाना नहीं बनाएगी। एक तो सारा दूध बर्बाद कर दी और ऊपर से मेरे घर में रहकर मुझसे ही ज़बान लड़ाती है। इतनी ही तकलीफ़ है यहां पर तुझे, तो छोड़ दे मेरा घर।”
कौशल्या देवी की बातें सुनकर जानकी सोचने लगी – “आख़िर माता सीता का घर कौन सा था – महाराजा जनक का महल, महाराजा दशरथ का महल, अशोक वाटिका अथवा पति के द्वारा परित्याग किए जाने के उपरांत वन में महर्षि वाल्मीकि जी की कुटिया।”

:- आलोक कौशिक 

आलोक कौशिक

नाम- आलोक कौशिक, शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य), पेशा- पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन, साहित्यिक कृतियां- प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में सैकड़ों रचनाएं प्रकाशित, पता:- मनीषा मैन्शन, जिला- बेगूसराय, राज्य- बिहार, 851101, अणुडाक- devraajkaushik1989@gmail.com