बाल कहानीबाल साहित्य

घमण्डी सप्तपर्णी

एक घना जंगल था। उसमे तरह तरह के पेड़ पौधे थे। भांति भांति के फल-फूल, पशु-पक्षी जंगल की शोभा में चार चाँद लगाते थे।

जंगल के बीच में एक शीतल पानी की झील थी जिसके किनारे सप्तपर्णी पेड़ों का एक झुंड था। ये पेड़ इतने पास पास लगे हुए थे कि दूर से देखने पर एक ही विशालकाय पेड़ नज़र आता था। इन पेड़ों पर तरह तरह के पक्षियों के घोंसले थे। तोता, हुदहुद, मैना, गोरैया, कौए और कोयल का कलरव सुबह शाम आसपास के वातावरण में गूँजता रहता था। साथ ही साथ बंदरों की शैतानी, खरगोश और गिलहरियों की दौड़ भी सारा दिन पेड़ों के आसपास चलती रहती थी। सप्तपर्णी आनन्द और गर्व के साथ इन पशु पक्षियों की छेड़छाड़ देखते रहते थे। झील पर पानी पीने आए जानवर भी कुछ देर विश्राम करने के लिए यहाँ अवश्य ही रुकते थे। इस से पेड़ों को अपने अस्तित्व पर गर्व करने का और भी ठोस कारण मिल जाता था।

वृक्ष की जड़ों में नन्ही चींटियों के बिल और एक ऊंची शाख पर मधुमक्खियों का एक छत्ता भी था। जो कि सप्तपर्णी को बिल्कुल पसंद नहीं था वो हमेशा यही चाहते थे कि किसी भी तरह से मधुमक्खियां और चींटियां यहां से कहीं और रहने चली जाएं।

एक बार की बात है जंगल मे लकड़ी काटने के लिए कुछ लोग आए। ये लकड़ी के तस्कर थे। सभी पेड़ों में हड़कंप मच गया… हाय अब हम काटे जाएंगे परन्तु सप्तपर्णी निश्चित थे उन्हें पता था उन पर रहने वाले इतने सारे पक्षी और जानवर उन्हें कुछ नहीं होने देंगे। ज़रूरत पड़ने पर वो अपनी पैनी चौंच और पंजों के तीखे प्रहारों से पेड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले इन लोगों को मार भगाएंगे।

आधी रात के समय शोर सुनकर सप्तपर्णी की आँख खुली। उन्होंने देखा उन पर रहने वाले सभी पशु पक्षियों में भगदड़ मची है। सभी पँछी बन्दर साँप व अन्य जानवर अपने अपने घर छोड़ कर भाग रहे थे। अपनी बड़ी बड़ी कुल्हाड़ियों से तस्कर आसपास के सारे पेड़ काट चुके थे। अब उनकी नज़र असहाय खड़े सप्तपर्णी के झुंड पर थी। उन्हें बचाने वाला वहां कोई भी नहीं था।

पेड़ों के पास आते लोगों पर अचानक ही हमला हुआ और वो चीखने लगे। चीटियों ने तस्करों के पैरों में काटा तो मधुमक्खियों ने चेहरे और हाथों को निशाना बनाया। तस्करों को नानी याद आ गई। वो ज़ोर ज़ोर से चीखते हुए अंधाधुंध भागने लगे। अपनी कुल्हाड़ी भी वहीं छोड़ गए।

सप्तपर्णी ने अपने बुरे व्यवहार पर नन्ही चींटियों और मधुमक्खियों से क्षमा माँगी। उनका घमंड चूर चूर हो चुका था। अब जंगल के सभी वृक्ष, जीव जंतु और पक्षी एक बराबर थे।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा