भजन/भावगीत

दर्शन दे दो हे …..

दर्शन दे दो हे …..
दर्शन दे दो हे त्रिपुरारी , डमरूधारी
की जग पे है छाई बीमारी …..
त्राहि त्राहि करती ….
त्राहि त्राहि करती अब तो दुनिया सारी
की जग पे है छाई बीमारी…. !
दर्शन दे दो हे त्रिपुरारी ……!

गाँव शहर सब ठप्प पड़े हैं , विपदा कैसी आई ..
बाबा विपदा कैसी आई
मानव मानव दूर रहें ये गजब की रीत चलाई
बाबा गजब की रीत चलाई
हाथ को दे आराम , किया अन्याय पेट से भारी
ऐसी भी तेरी………..जय हो
ऐसी भी तेरी है क्या बता लाचारी
की जग पे है छाई बीमारी ….
दर्शन दे दो हे त्रिपुरारी , डमरूधारी ……..

मानव गलती का पुतला है , अब तो दे दे माफी
बाबा अब तो दे दे माफी
मानव मानव बन कर जी ले इतना ही है काफी
बाबा इतना ही है काफी
जीने के लिए ………जय हो
जीने के लिए ना धर्म की लाचारी
की जग पे है छाई बीमारी ……….
दर्शन दे दो हे त्रिपुरारी , डमरूधारी ……..

बड़े बड़े दानव हैं संहारे , फिर दानव ये क्या है
बाबा फिर दानव ये क्या है ……
मानव की बुद्धि गुम है वो समझे नहीं ये क्या है
बाबा समझे नहीं ये क्या है …
कोई काम न आई …….जय हो
कोई काम न आई , सबकी होशियारी
की जग पे है छाई बीमारी ….
दर्शन दे दो हे ….

हाथ जोड़ करता हूँ विनती , बात मेरी तू सुन ले
बाबा बात मेरी तू सुन ले ……
कर संहार कोरोना का , इंसान का जीवन चुन ले
तू इंसान का जीवन चुन ले …
भक्त करें तुझसे ………जय हो
भक्त करें तुझसे विनती अब बारी बारी
की जग पे है छाई बीमारी ……
दर्शन दे दो हे त्रिपुरारी , डमरूधारी …

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।