कहानी

धरम करम

शेर सिंह पक्का नास्तिक था। उसकी पत्नी सुरजीत कौर का अपने धर्म में विश्वास तो था, लेकिन शेर उसको गुरदुआरे के सिवा कोई और साधू संत या डेरे पे जाने नहीं देता था। सिख धर्म की मर्यादा के अनुसार उसने अपने घर में कभी भी कोई अखंड पाठ या अन्य रसम कराने की इजाजत नहीं दी थी। वोह इसको करम कांड के सिवा और कुछ नहीं समझता था। यहाँ तक हो सके किसी जरूरतमंद की सहायता करना या किसी के काम आना ही उसकी सोच थी। इसके विपरीत उन की पड़ोसन बिशन कौर अपने घर में कोई न कोई धार्मिक रस्म कराती ही रहती थी। वोह गुरदुआरे की बहुत श्रद्धालु थी। गुरदुआरे में वोह सखिओं के संग कीर्तन में हिस्सा लेती। पड़ोसी होने की वजह से सुरजीत कौर को अक्सर बिशन कौर के घर जाकर समागम में शामिल होना पड़ता था लेकिन इसमें शेर सिंह को कोई परेशानी नहीं थी, क्योंकि दोनों घरों के संबंध बहुत सालों से अच्छे चले आ रहे थे। रस्म सम्पूर्ण होने के बाद गप शप्प करती औरतों की आवाज़ें अक्सर सुनाई देती थीं जिनमें कभी कभी किसी की चुगली कर देना भी शामिल होता था और इस पर शेर सिंह हँसता रहता था।

शेर सिंह के बारे में बिशन कौर को सब पता था और इसकी वजह से वोह सुरजीत कौर के साथ हमदर्दी रखती थी। बिशन कौर गुरदुआरे में लंगर की सेवा में हाथ बंटाती और श्रद्धालुओं के जूते साफ़ करती। गुरदुआरे के लोग उसकी बहुत इज़त करते थे। अपने पति को अधर्मी देखते सुरजीत कौर का मन अंदर से दुखी होता था। कभी कभी बिशन कौर जब शेर सिंह से मिलती तो उसको कह ही देती, ” शेर सिंघा, कभी कोई धर्म कर्म का काम भी कर लिया कर, एक दिन तो धर्म राज के पास हिसाब देना पड़ेगा, क्या मुंह ले के जाएगा ! “, शेर सिंह, हंस कर कहता, ” ओ अम्मा, धर्म राज कौन से प्लैनेट पर रहता है, ऊपर जाने को कितने घंटे लग्ग जाएंगे ! ” , ” तू नहीं सुधरेगा ” कहकर बिशन कौर चल पढ़ती। शेर सिंह और बिशन कौर की ऐसी बातें अक्सर होती ही रहती थीं लेकिन बिशन कौर इन बातों का गुसा नहीं करती थी।

रविवार का दिन था और शेर सिंह चारपाई पर बैठा अखबार पढ़ रहा था। पढ़ते पढ़ते उसे दस ग्यारह साल की एक लड़की की फोटो दिखाई दी। वोह खबर को पढ़ने लगा। यह लड़की किडनी की मरीज़ थी जो किडनी न मिलने की वजह से इस दुनीआ से रुखसत हो गई थी। लड़की का मसूम चेहरा देखकर उस का मन उदास हो गया। उसी वक्त उसने अंगदान करने का फैसला ले लिया और दूसरे दिन वोह अंगदान रजिस्टर में अपना नाम दर्ज करा आया। जब घर आकर उस ने पत्नी को बताया तो वोह गुस्से हो गई कि यह तो सरासर धर्म के खिलाफ था। अंत समय में पूरे अंग होने चाहिए,  यह तो उसने घोर पाप कर दिया था। कुछ दिन ऐसे ही बीत गए और ज़िंदगी पहले की तरह चलने लगी और यह बात आई गई हो गई। एक दिन शेर सिंह अपनी गाड़ी में कहीं से आ रहा था कि गुरदुआरे से निकली बिशन कौर उसे दिखाई दी जो छड़ी के सहारे धीरे धीरे चल रही थी। शेर सिंह ने उस के पास आकर गाड़ी खड़ी कर दी और उससे पूछा कि अगर उसने घर जाना हो तो गाड़ी में बैठ जाए। गाडी में बैठते हुए बिशन कौर बोली,  “तेरा भला हो शेर स्यांह, इन मूये घुटनों ने तो तंग कर रखा है “, बातें करते करते वो चल रहे थे कि आगे से आती हुई एक गाड़ी कंट्रोल से बाहर हो गई और सीधी शेर सिंह की गाड़ी से जा टकराई। शेर सिंह उसी वक्त बेहोश हो गया।

बेहोशी की हालत में हस्पताल की बैड पर शेर सिंह पढ़ा था। उसी वक्त यमराज ने आकर उसे अपने भैंसे पर बिठाया और हवा में उड़ने लगा। अगले पल वोह धर्मराज के दरबार में खड़ा था। धर्म राज जी चित्र गुप्त से बोले,  “चित्र गुप्त जी ! जरा शेर सिंह की ज़िंदगी की एक कॉपी देना “, चित्र गुप्त ने अपने कम्प्यूटर पे कुछ टाइप करके प्रिंटर से एक कॉपी निकाल दी और धर्मराज जी के हाथ में पकड़ा दी। कुछ देर इस पेपर को पढ़ने के बाद धर्मराज जी शेर सिंह की ओर देखकर बोले,  “शेर सिंह  ! तू ने अपनी ज़िंदगी में कोई धर्म कर्म तो किया नहीं और ना ही तू ने कभी मुझे याद किया है लेकिन तेरे अंगदान किये हुए अंगों ने पांच लोगों को नया जीवन दिया है, इस लिए स्वर्ग लोक में तुम्हारी सीट पक्की हो गई है ” , धर्म राज के दरबार से बाहर आते वक्त वोह सोच रहा था कि वोह तो सारी उम्र नर्क स्वर्ग को एक ढोंग ही समझता था लेकिन यह तो सच था।

तभी एक यमराज बिशन कौर को पकड़े अंदर ले जा रहा था। शेर सिंह वहीं खड़ा हो गया और बिशन कौर का भाग्य देखने की गरज़ से वापस मुड़ आया। शेर सिंह ने देखा कि धर्म राज जी बिशन कौर को कड़ककर बोल रहे थे,  “ए बिशन कौर, तुझे नर्क कुंड की आग में रोस्ट किया जाएगा, कुछ बोलना है तो बोल “, बिशन कौर कांपती हुई बोली, “महाराज ! मैं सारी उम्र आपका नाम जप्ती रही, कितने ही अखंडपाठ करवाए, अनगिनत सत्संग कराये, गुरदुआरे में जूते साफ़ करती रही, फिर मुझे इतनी सजा क्यों जबकि शेर सिंह ने कभी गुरदुआरे की तरफ देखा भी नहीं और कभी कोई धर्म कर्म का काम भी नहीं किया, फिर भी उस को स्वर्ग में जगह दे दी गई “, धर्म राज जी क्रोधित हो कर बोले, शेर सिंह के अंगदान करने से पांच लोगों  को जीवन दान मिला है, तूने किसी को जीवनदान तो किसी को क्या देना था, तूने अपनी खुद की तीन बहुओं को उनकी कोख में ही बेटीआं कत्ल करने को मजबूर किया, जिन कन्याओं को मैंने भेजा था, तू ने उनको खत्म कर दिया, तू एक नीच औरत है, ले जाओ इसको और अगन कुंड में फेंक दो। चीखें मारती बिशन कौर पता नहीं किधर गई।

हस्पताल में बैड पर पढ़े शेर सिंह की आँख खुल गई। बैड के इर्द गिर्द उस की बीवी और बच्चे उदास हुए खड़े थे। उसकी आँखें खुलने से सभी की आँखों में ख़ुशी झलकने लगी। नज़रें घुमा घुमाकर शेर सिंह ने सबके चेहरों पर नज़र डाली और अचानक खिल खिलाकर हंसने लगा।

— गुरमेल भमरा

One thought on “धरम करम

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, दिल को छूने वाली बहुत मार्मिक कहानी है.

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