कविता

कविता

बात रखो तो दमदार रखो,
शब्द दर शब्द शानदार रखो,
ऐतेबार रखो अपने श्याम पे,
आसमान पर नज़र रखो,
और ख़्वाबों की महफ़िल में,
हमसफ़र पर ऐतेबार रखो,
बुलन्दी आसमान सी रखो,
उड़ते परिन्दों पर नज़र रखो,
जो भी करना है, कर गुज़रना है,
यूं ना दिल में अगर-मगर रखो,
डगर पे अपने पैर जमा कर,
अपने को देखने के लिये आईना रखो,
करो दिल में आस के दीपक रौशन,
उलझनों पर भी कुछ नज़र रखो,
जो ख़त्म कर दे उदासी को,
दीवानगी सी जीने की आस रखो,
दिल में हो ताज़गी फूलों जैसी,
दिमाग़ खुशबू सा महकाये रखो,
जब मौत ही जीवन का अंत है,
तो क्यों भला दिल में कोई डर रखो।
— सीमा राठी

सीमा राठी

सीमा राठी द्वारा श्री रामचंद्र राठी श्री डूंगरगढ़ (राज.) दिल्ली (निवासी)