कहानी

टाइमपास

स्नेहा बालकनी में बैठी सुबह की रेशमी किरणों में अखबार पढ़ रही थी कि उसकी नजर अपने बेटे अमोल पर पड़ी जो मोबाइल में टकटकी लगाए मुस्कराए जा रहा था । उसके चेहरे पर चमक थी । मोबाइल पर उंगलियां फिरती और कुछ देर बाद फिर उसके चेहरे पर मुस्कान के नए रंग खिल जाते । शायद किसी खास से चैटिंग चल रही थी । स्नेहा को चुहल सुझी उसने अमोल को पास बुलाया और पुछा – अमोल ये मेघा कौन है ???
माँ का सवाल सुन अमोल सकुचा गया और झेंपते हुए कहा – कौन मेघा माँ ??
स्नेहा – वही मेघा जिसके मैसेज और कॉल्स के कारण तेरा मोबाइल सरकारी दफ्तर के फोन की तरह बजता ही रहता है ।
अमोल – कोई नहीं है मां , ये सब दोस्त लोग हैं।

स्नेहा – झूठ बोल के फायदा नहीं है । मां को सब पता रहता है। कौन दोस्त सुबह छह बजे से चैटिंग करता है?? इज समवन स्पेशल ????
स्नेहा ने शरारती अंदाज में पुछा ।
अमोल कुछ शर्मा सा गया और बोला – ऐसा कुछ नहीं है माँ , वो तो बस टाइमपास …….

…चटाक्…
अभी अमोल की बात पूरी भी नहीं हुइ थी कि स्नेहा का हाथ अमोल के गाल को लाल कर चुका था । इस अप्रत्याशित थप्पड़ से अमोल सन्न रह गया और उसकी आँखें भर आई । स्नेहा की देवरानी सरोज भी वहीं थी । वह भी स्नेहा के इस औचक व्यवहार से दंग थी । वह अमोल को उसके कमरे में ले गई और शांत कराया और फिर स्नेहा के पास गई ।

स्नेहा अपने कमरे में बैठी थी। उसे भी अपने किए की ग्लानि थी । सरोज ने उसके कांधे पर हाथ रख धीरे से पुछा – क्या हुआ दीदी , अचानक ??
स्नेहा फफक कर रो पड़ी ।
” कोई किसी को टाइमपास कैसे समझ सकता है ??”

स्नेहा के इस जवाब ने सरोज के मन में कई सवाल जगा दिए और फिर काफी हां ना के बाद स्नेहा ने उसे अपना वो किस्सा सुनाया ।

” बात तब की है जब मैं एम एस सी में थी । सुंदर भी थी और पढ़ाई लिखाई में भी ठीक ठाक तो लड़कों का मेरे आगे पीछे मंडराना , प्रपोज करना कोई नई बात नहीं थी । ऐसा कई बार हुआ था पर ‘नरेंद्र’ में कुछ अलग बात थी । वह शायद थोड़े गरीब परिवार का था । सादा लिबास , सादा रहन-सहन और उतनी ही सादगी व्यवहार में पर स्वाभिमानी । पढ़ाई में भी अव्वल था । पर सबसे खास बात थी उसकी कविताएं । हम दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई थी । समय बीता । फेयरवेल की पार्टी में एक गेम में मेरे हाथ में उसके नाम की पर्ची आई और मुझे उसके साथ अपने रिलेशनशिप को एक शब्द में बताना था । पता नहीं क्यों पर मैं ने कह दिया – टाइमपास । सारी क्लास जोर से हंस पड़ी। वह भी हंसा पर उसकी हंसी के पीछे की पीड़ा मैंने महसूस की । मैं उससे सॉरी कहना चाहती थी पर इससे पहले ही वह पार्टी छोड़कर चला गया था। मैं साड़ी के ड्रेसकोड थी तो हॉस्टल भी नहीं जा सकी । उसके बाद कॉलेज की छुट्टियां थी , फिर भी मैं दो तीन बार कॉलेज गई की शायद मुलाकात हो जाए पर नहीं हो पाई । अकेले हॉस्टल जाने में संकोच था सोचा परीक्षा के दिन तो मिलेगा । पर वह परीक्षा देने भी नहीं आया । तब मेरा धैर्य टूट गया और मैं पेपर खत्म होते ही हॉस्टल गई।
वहां उसके रुम मेट ने मुझे बताया कि वह तो फेयरवेल के दिन ही कुछ अर्जेंसी है कहकर घर चला गया था , फिर लौटा नहीं और एक लेटर दिया था सिर्फ तुम्हें देने के लिए। मैं ने लेटर लेकर पढ़ा । सिर्फ एक बात लिखी थी ।
” मैं टाइमपास नहीं हूं ।”

सरोज , मैं कभी उससे दुबारा नहीं मिल सकी । मैं उसे नहीं बता सकी कि वो टाइमपास नहीं था । मैं नहीं जानती कि मैं उसे प्यार करती थी या नहीं पर उस दिन के बाद मुझे खुद से और इस शब्द से नफ़रत हो गई । ”

सरोज स्तब्ध थी।

समर नाथ मिश्र