कविता

मेरी समझदारी

वर्षों से सम्भाल रखा है
अपने हृदय में
मेरी समझदारी को
मित्र बनाकर,
मेरी हर जिद उसे सौंपकर
मैं बेफिक्र हो जाती
वह भी मुझे बहलाकर
अपना फर्ज निभाती…
किन्तु कभी-कभी
यही मित्र मुझे
शत्रु सी प्रतीत होती,
मेरे सपनों की दुनिया उजाड़ने
मानो हर बार आ जाती
मेरे अरमानों का गला घोंटने
मुझे समझाने-बुझाने…
मेरी लाख कोशिशों पर भी
नहीं जाती मुझे छोड़कर
मेरी डांट फटकार को
नजर अंदाज कर आ जाती
अपनी मित्रता निभाने…
बेचारी जाएगी भी कहां
कौन है जो रखेगा उसे
मेरी तरह…
सहसा मेरा हृदय पिघल जाता
और उसे गले लगाकर
रख लेती हूँ अपने पास
मित्र बनाकर.

नीतू शर्मा 'मधुजा'

नाम-नीतू शर्मा पिता-श्यामसुन्दर शर्मा जन्म दिनांक- 02-07-1992 शिक्षा-एम ए संस्कृत, बी एड. स्थान-जैतारण (पाली) राजस्थान संपर्क- neetusharma.prasi@gmail.com