कविता

अपर्यय

आज किसी की जगह ली है तुमने
कल तुम्हारी जगह कोई और लेगा
पेड़ शोक नहीं मानता है पतझड़ का
बल्कि खिला लेता है कोंपलों को
और झड़े हुए सूखे पत्ते बटोर कर
कोई ना कोई माली जला ही देता है
राख मिट्टी, हवा, पानी में मिल जाती है
जिसके कहीं निशान नहीं रह जाते
जो पत्ते जल नहीं पाते हैं, रह जाते हैं
मसल देता है उन्हें भी कोई ना कोई
इस तरह वह भी मिट्टी में ही मिल जाते हैं
कल वह हंस रहे थे किसी पर
आज उन पर कोई और हंस रहा है
कल तुमने ली थी जगह किसी की
आज तुम्हारी जगह कोई और ले रहा है…
– शिप्रा खरे (गोला- खीरी)

 

शिप्रा खरे

नाम:- शिप्रा खरे शुक्ला पिता :- स्वर्गीय कपिल देव खरे माता :- श्रीमती लक्ष्मी खरे शिक्षा :- एम.एस.सी,एम.ए, बी.एड, एम.बी.ए लेखन विधाएं:- कहानी /कविता/ गजल/ आलेख/ बाल साहित्य साहित्यिक उपलब्धियाँ :- साहित्यिक समीर दस्तक सहित अन्य पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित, 10 साझा काव्य संग्रह(hindi aur english dono mein ) #छोटा सा भावुक मेरा मन कुछ ना कुछ उकेरा ही करता है पन्नों पर आप मुझे मेरे ब्लाग पर भी पढ़ सकते हैं shipradkhare.blogspot.com ई-मेल - shipradkhare@gmail.com