कविता

प्रलयंकारी कोरोना

हाहाकार मचा आज इस धरती पर

भूचाल आया आज इस धरती पर।
इंसान को अपने कद का आभास हुआ
काल की शक्ति का उसे अहसास हुआ।
बलशाली से बलशाली भी बेहाल हुआ
उसका भी अभिमान तार-तार हुआ।
गरीबों का जीवन ओर भी दुश्वार हुआ
राशन-पानी का वो मोहताज हुआ।
शवों का आज यहाँ अंबार लगा हुआ
दो गज़ भी मिलना नामुमकिन-सा हुआ।
राजा-रंक सबका संघार हुआ
सबका जीवन काल हुआ।
पर इन मुश्किल हालातों मे
कुछ लोग लोहा ले रहे है इस महामारी से।
फर्ज़ से ऊपर उनके लिए कुछ नहीं
वो ऐसे वीर है जो कभी थकते नहीं।
लोक-सेवा मे सर्मपित
कर दिया इन्होने खुद को अर्पित।
नत्मस्तक हूँ मै आज इनके आगे
जो इस प्रलयंकारी महामारी से नहीं भागे।

श्रीयांश गुप्ता

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