कविता

मृदुल कूक

तुम कूक उठी
मृदुल-मृदुल
ये गान तुम्हारा अमर रहे |
प्रेमीजन सुन कूक तुम्हारी मगन रहे ||

तुम काली-काली
रुप न देखा जग
स्वर उतर जाये उर |
जैसे प्रेमी की हूक अमर ||

स्वच्छ गगन तले
घने पातों के बीच छिपे
कंठ तुम्हारा अमृत बर्षाये |
गा-गाकर अमर गान स्वयं ही हर्षाये ||

कोकिल प्यारी
श्याम छवि न्यारी
गूँज रही बागों में ध्वनि तुम्हारी |
तुम गाओ नित-नित, हम सुनेंगे मृदुल कूक तुम्हारी ||

— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111